नागौर के कृषि अनुसंधान उपकेन्द्र में मूंग की जीएम-5, एमएच-421, सत्या तथा ग्वार में आरजीएन-112, मोठ आरएमओ-435 और तिल की आरसी-153 उन्नत किस्म का बीजोत्प
नागौर•Nov 13, 2017 / 06:38 pm•
Sharad Shukla
Nagauri Fenugreek will be used on technical basis in the world
नागौर. कृषि अनुसंधान उपकेन्द्र की ओर से उन्नत किस्म के खरीफ बीजों में मूंग, ग्वार, मोठ, तिल तथा बाजरा का उत्पादन इस बार अपेक्षित लक्ष्य की अपेक्षा 50 फीसदी से भी कम रहा है, लेकिन इन बीजों को कृषि वैज्ञानिकों ने ना केवल स्थानीय वातावरण के अनुकूल बनाया है, बल्कि गुणवत्ता भी 100 फीसदी बताई है। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि इन बीजों से ना केवल काश्तकारों की उपज पहले से ज्यादा गुणवत्तापूर्ण रहेगी, बल्कि उत्पादन भी बेहतर रहेगा। इनमें बाजरा का बीज तो ऐसा है कि जिसकी पौध को पक्षी भी नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे।
बीकानेर रोड स्थित जोधपुर कृषि विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कृषि अनुसंधान उपकेन्द्र में मूंग की जीएम-5, एमएच-421, सत्या तथा ग्वार में आरजीएन-112, मोठ आरएमओ-435 और तिल की आरसी-153 उन्नत किस्म की बुवाई की गई थी। सभी बीजों का कुल 500 से 700 क्विंटल बीज का उत्पादन होना था, लेकिन अपर्याप्त मात्रा में हुई बारिश की वजह से इस पर पानी फिर गया।
अनुसंधान केन्द्र के अधिकारियों के अनुसार उत्पादित बीजों में मूंग-150 क्विंटल, मोठ-20 क्विंटल, बाजरा-10 क्विंटल, ग्वार साढ़े चार क्विंटल एवं तिल केवल पौने दो क्विंटल ही रहा। उत्पादन लक्ष्य 500 क्विंटल की अपेक्षा केवल 150 क्विंटल होने से वैज्ञानिकों में आंशिक रूप से निराशा रही। कृषि वैज्ञानिकों का कहना था कि बारिश पर्याप्त होती तो स्थिति और बेहतर हो सकती थी।
स्थानीय वातावरण के अनुकूल हैं बीज
अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिकों ने बुवाई से पकने तक स्थानीय वातावरण के प्रभावों का अध्ययन करने के साथ ही बीजों उत्पादन तक की गतिविधियों का वैज्ञानिक अध्ययन किया। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि इन बीजों को वातावरण के अनुकूल बनाने में काफी मेहनत की गई है। वातावरण की प्रत्येक गतिविधियों के अध्ययन के पश्चात यह बीज तैयार हो सका है। काश्तकारों को ना केवल इसकी वैज्ञानिक जानकारियां उपलब्ध कराई जाएगी, बल्कि बीज की गुणवत्ता के आधार पर इसकी बुवाई की तकनीकी भी बताई जाएगी।
पत्तियों पर नुकीला जाल
अनुसंधान केन्द्र में उत्पादित नई किस्म के बीज की पौध का पक्षी सेवन नहीं कर सकेंगे। इस की विशेषता यह है कि पौध की पत्तियों के चारों ओर बने नुकीला जाल होने से पक्षी दाने तक नहीं पहुंच पाएंगे। वरिष्ठ अध्येता अर्जुनराम बिजारणियां ने बताया कि पौध के ऊपरी हिस्से में कांटेदार पत्तियों का जाल रहता है। यह नुकिला जाल ही पक्षियों के लिए अवरोधक बन जाएगा। कई प्रयास के बाद भी पक्षी इसे नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे।
& कृषि अनुसंधान उपकेन्द्र में मूंग, ग्वार में आरजीएन-112, मोठ और तिल की का उत्पादन इस बार अपर्याप्त बारिश की वजह से 50 फीसदी हो पाया। उत्पादित बीज की विशेषताएं एवं बुवाई की वैज्ञानिक जानकारी किसानों को दी जाएगी।
एम. एल. मीणा, प्रभारी, कृषि अनुसंधान उपकेन्द्र नागौर