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नागौर

सरकार ने 19 वर्ष पहले मांगी अनुशंषाएं, अब जगी स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान मिलने की उम्मीद

पत्रिका अभियान : जरा याद उन्हें भी कर लो… स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान दिलाने की कवायद

नागौरAug 14, 2020 / 11:11 am

shyam choudhary

Dabda freedom fighters

Collector raised hope to honor freedom fighters

परबतसर/नागौर. आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों से लोहा लेने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान देने एवं भावी पीढ़ी उन्हें याद रखे, इसके लिए 19 वर्ष पहले राज्य सरकार के तत्कालीन शासन सचिव विनोद जुत्शी ने 18 जुलाई 2001 को प्रदेश के सभी जिला कलक्टर को पत्र लिखकर स्वतंत्रता सेनानियों के नाम से राजकीय भवन, चिकित्सालय, स्कूल, महाविद्यालय, पार्क, चौराहे एवं रास्तों के नामकरण के सम्बन्ध में रिपोर्ट मांगी थी।
शासन सचिव जुत्शी ने पत्र में 14 मई 2000 के आदेश का हवाला देकर बताया कि जिले में जिला कलक्टर की अध्यक्षता में गठित समिति की बैठक बुलाकर स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर राजकीय भवन, राजकीय चिकित्सालय, स्कूल, महाविद्यालय, पार्क, चौराहे एवं रास्तों के नामकरण पर निर्णय लिए जाएं तथा तदनुसार राज्य सरकार को अनुशंषाएं भिजवाई जाए। इसके बावजूद पिछले 19 वर्षों में किसी भी स्वतंत्रता सेनानी को सम्मान नहीं मिल पाया, लेकिन अब जिला कलक्टर डॉ. जितेन्द्र कुमार सोनी ने नागौर के स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान दिलाने की उम्मीद जगाई है। कलक्टर सोनी ने गत दिनों शिक्षा विभाग के अधिकारियों को निर्देश देकर स्कूलों के पुस्तकालयों के नामकरण स्वतंत्रता सेनानियों के नाम करने के निर्देश दिए हैं, साथ ही शिक्षा विभाग के उच्चाधिकारियों से भी इसकी स्वीकृति मांगी गई है।
स्वतंत्रता सेनानी गोदारा के नाम से नहीं मिला कुछ
परबतसर के समीपवर्ती ग्राम किनसरियां में गोदारो की ढाणी निवासी स्वतंत्रता सेनानी चुनाराम गोदारा का स्वर्गवास 3 अक्टूबर 2011 को हुआ था। उस समय राजकीय सम्मान के साथ 21 तोपो की सलामी व तिरंगे में लपेटकर जिला कलक्टर द्वारा सलामी दी गई। 8 वर्ष बीत जाने के बाद भी स्वतंत्रता सेनानी गोदारा के नाम से किसी प्रकार का मार्ग या स्कूल का नामकरण नहीं हो पाया। स्वतंत्रता सेनानी रहे चूनाराम 20 वर्ष की आयु में सनï 1938 में भारतीय सेना में भर्ती हो गए और सैनिक के रूप में उन्होंने 1940 तक अपनी सेवाएं बरेली में दी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा हिरोशिमा भेजा गया। उसी दौरान सुभाषचन्द्र बोस द्वारा आजाद हिन्द फौज बनाने का आह्वान किया गया। युद्ध के दौरान हिरोशिमा पर बमबारी से एक लाख आजाद हिन्द फोज के सैनिको में से मात्र 15-16 हजार सैनिक बचे, जिन्हें बंदी बनाकर सिंगापुर जेल में भेज दिया तथा 1940 से 1943 तक उन्हें वहां रखा गया। सनï 1943 में उन्हें देशद्रोही घोषित कर पुन: भारत भेज दिया। इसके पश्चात 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया। सनï 1965 में गोदारा को भारतीय सेना में सम्मिलित होने के लिए बुलावा पत्र भेजा गया, लेकिन पारिवारिक परिस्थितियों के चलते वे वापस सेना में सम्मिलित नहीं हो सके। सनï 1976 में भारत सरकार द्वारा दो सौ रुपए प्रतिमाह तथा 1978 में राज्य सरकार द्वारा 100 रुपए प्रतिमाह पेंशन चालू की गई।
राज्य सरकार से कुछ नहीं मिला
गोदारा के पौत्र भंवराराम गोदारा ने बताया कि उनके स्वर्गवास को करीब 8 वर्ष बीतने को हैं लेकिन स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर सरकार द्वारा ना तो किसी मार्ग का नामकरण किया गया और ना ही किसी प्रकार का स्मारक बनाया गया। वे खुद राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय किनसरियां का नामकरण उनके नाम से करवाने को प्रयासरत हैं, लेकिन अब तक सफलता नहीं मिली है। सरपंच रह चुके गोदारा ने बताया कि दादाजी हमेशा उनके आदर्श रहे हैं।
सबका एक ही जवाब – कोई मामला विचाराधीन नहीं
19 वर्ष पहले सरकार के आदेश पर कलक्टर ने जिले के तहसीलदारों व उपखंड अधिकारियों से इस सम्बन्ध में प्रस्ताव मांगे, लेकिन आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि परबतसर को छोडकऱ नागौर, जायल, खींवसर, डीडवाना, लाडनूं, नावां, मेड़ता, डेगाना, मकराना तहसील क्षेत्र से कलक्टर को मिली रिपोर्ट में चार शब्दों में रिपोर्ट भेजी – कोई मामला विचाराधीन नहीं। परबतसर तहसील में स्वतंत्रता सेनानी चुनाराम गोदारा के नाम से चिकित्सालय का नामकरण करने तथा स्वतंत्रता सेनानी हरिसिंह राठौड़ के नाम से राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय का नामकरण करने प्रस्ताव तो आया, लेकिन साथ ही टिप्पणी में यह भी लिख दिया कि चुनाराम जीवित हैं, इसलिए प्रकरण स्वीकृत योग्य नहीं है तथा ही हरिसिंह लाडनूं तहसील क्षेत्र के हैं, इसलिए संभव नहीं है।

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