राजनीति का खेल बड़ा अजीब है,
दुश्मन वही बनता जो सबसे करीब है, गली-गली में पर्दे लगते हैं
वोट हमें दो यही कहते हैं कहीं चाय संग पकोड़े बनते हैं
कहीं पकवानों के थाल सजे हैं
दुश्मन वही बनता जो सबसे करीब है, गली-गली में पर्दे लगते हैं
वोट हमें दो यही कहते हैं कहीं चाय संग पकोड़े बनते हैं
कहीं पकवानों के थाल सजे हैं
मान मनवार में कमी नहीं करते
मतभेदों को भुलाकर चलते हैं मेरे शहर में आया एक त्यौहार
जिसे बोलते भैया चुनाव काठड़िया चौक में चौपाल बैठाते
हार जीत का समीकरण लगाते ज्ञानी घर में बैठे रहते
अज्ञानी मैदान में उतरते हैं
सावधान होकर करें मतदान, तब ही होगा शहर का कल्याण।
मतभेदों को भुलाकर चलते हैं मेरे शहर में आया एक त्यौहार
जिसे बोलते भैया चुनाव काठड़िया चौक में चौपाल बैठाते
हार जीत का समीकरण लगाते ज्ञानी घर में बैठे रहते
अज्ञानी मैदान में उतरते हैं
सावधान होकर करें मतदान, तब ही होगा शहर का कल्याण।
यह है ऐसा त्यौहार है
जिसे बोलते हैं भैया चुनाव। ✍️ नीलू नंदकिशोर खड्लोया नगर परिषद चुनाव के परिपेक्ष में लिखी ये कविता आपको अच्छी लगे तो शेयर जरूर करें
जिसे बोलते हैं भैया चुनाव। ✍️ नीलू नंदकिशोर खड्लोया नगर परिषद चुनाव के परिपेक्ष में लिखी ये कविता आपको अच्छी लगे तो शेयर जरूर करें