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नागौर

जैन विश्व भारती में हो रहा पांडुलिपियों का संरक्षण

छह हजार बहुमूल्य पाण्डुलिपियां

नागौरJun 18, 2019 / 06:37 pm

Suresh Vyas

Ladnu

Ladnu News

लाडनूं. जैन विश्वभारती संस्थान में स्थापित पाण्डुलिपि संरक्षण केन्द्र में भारतीय संस्कृति की धरोहर कही जाने वाली पुरालिपियों में निबद्ध प्राचीन भारतीय साहित्य को संरक्षित करने एवं पाण्डुलिपियों को सुरक्षित करने का कार्य किया जा रहा है। संस्थान में लगभग छह हजार बहुमूल्य पाण्डुलिपियां हैं, जिनमें से अधिकतर अप्रकाशित हैं। इन सबका संरक्षण इस केन्द्र द्वारा किया जा रहा है। इसके साथ ही लाडनूं क्षेत्र के आसपास मंदिरों, सामुदायिक वाचनालयों, व्यक्तिगत पुस्तकालयों एवं घरों में संपर्क करके जहां-जहां भी पाण्डुलिपियां सुरक्षित हैं, वहां पहुंचकर उन पाण्डुलिपियों को आवश्यकतानुसार संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है

इस प्रकार की जाती है पांडुलिपियां सुरक्षित

केन्द्र में नियुक्त किए गए विशेषज्ञ कार्यकर्ता पाण्डुलिपियों के संरक्षण का काम कर रहे हैं। इनमें मुख्य रूप से प्रत्येक पाण्डुलिपि के पन्नों में नमी होने पर उन्हें प्राकृतिक तरीके से अथवा आवश्यक केमीकल से दूर किया जाता है और यदि यदि पन्ने फट गए हों अथवा कीड़े लग गए हों तो उनमें आवश्यकतानुसार हस्त निर्मित कागज को जोडकऱ सम आकार का किया जाता है। साथ ही केन्द्र में प्राप्त की गई प्रत्येक पाण्डुलिपि का विस्तृत रिकार्ड रखा जाता है। इन संरक्षित की गई सभी पांडुलिपियों को अंत में विशेष गत्ते को लगाकर उसे लाल रंग के सूती कपड़े में बांधा जाता है, जिससे पुन: उसमें नमी एवं कीड़े आदि ना लगे। ये सभी कार्य संस्थान के पाण्डुलिपि संरक्षण केन्द्र में केन्द्र के समन्वयक एवं जैन विद्या विभाग के सहायक आचार्य डॉ. योगेश कुमार जैन के निर्देशन में किए जा रहे हैं।

राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन से मिली सहायता

इस पांडुलिपि संरक्षण केन्द्र की स्थापना राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन नई दिल्ली के सौजन्य से की गई है। राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन नई दिल्ली के प्रयासों से देश में पाण्डुलिपियों के संरक्षण, संवर्धन एवं रखरखाव के साथ उनके सूचीकरण का कार्य मिशन करा रहा है। लेकिन अब तक केवल 30 प्रतिशत पाण्डुलिपियों का ही संरक्षण संभव हो पाया है। संरक्षण एवं सूचीकरण की श्रृंखला को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से मिशन के सौजन्य से जैन विश्वभारती संस्थान में इस केन्द्र की स्थापना की गई है। राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन द्वारा इस कार्य के लिए जैविभा संस्थान को सहयोग प्रदान किया गया है। पूर्व में संस्थान ने पाण्डुलिपि के पठन-पाठन को सरल बनाने के लिए इक्कीस दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला की थी तथा इस कार्यशाला की सफलता के परिणाम स्वरूप मिशन ने संस्थान में पांडुलिपि संरक्षण केन्द्र खोले जाने की स्वीकृति प्रदान की थी।

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