सूत्रों के अनुसार एक तो नफरी की कमी और उस पर काम का बोझ ज्यादा। एसआई ही नहीं एएसआई और हैड कांस्टेबल पहले से ही कम हैं। और तो और कांस्टेबल तक के पद खाली हैं। कई थानों पर तो नफरी आधी भी नहीं है। ऐसे में साप्ताहिक अवकाश तो छोडि़ए आवश्यकता पर भी अवकाश मिलता है तो गिने-चुने दिन का।
करीब छह महीने पहले तत्कालीन डीजी ने आर्डर किया था कि शारीरिक के साथ मानसिक आराम के लिए थानों पर साप्ताहिक अवकाश देना शुरू किया जाए। आदेश में कहा गया था कि साप्ताहिक अवकाश को वृहद स्तर पर लागू करें, जिससे कार्मिकों का आत्मबल बढऩे के साथ उसके काम में भी सुधार हो। इसकी शुरुआत जायल थाने से की गई थी। इसके बाद विधानसभा चुनाव आ गए और अब लोकसभा चुनाव आने वाले हैं। ऐसे में फिलहाल साप्ताहिक अवकाश मिलना तो संभव ही नहीं दिख रहा।
यह भी नहीं आए धरातल पर मुख्यालय से करीब छह माह पूर्व आए आदेश में कहा गया था कि पुलिस बल में बेहतर संचार तथा भरोसे को कायम रखने के लिए सैनिक सम्मेलन की पुरानी परम्परा को फिर से जीवित करने के साथ सम्पर्क सभा, रोलकॉल, मैस में जवान/अधिकारियों के सामूहिक भोज आदि को रूटीन बनाया जाए। इससे पुलिस बल को दक्ष, अनुशासित, समस्या निराकरण व्यवस्था को बेहर प्रभावी व उपयोगी बनेगी। यह आदेश/सुझाव धरे के धरे हैं, साप्ताहिक अवकाश की तरह इन पर भी कोई कार्य नहीं हुआ।
बहुत कुछ सुधार की आवश्यकता बताया जाता है कि मुख्यालय से कुछ समय पूर्व यह भी कहा गया कि उच्च अधिकारी कार्मिकों को यथासम्भव उनकी रुचि के स्थान पर पदस्थापित कर उन्हें जिम्मेदारी दें। इससे ना सिर्फ काम में गतिशीलता आएगी साथ ही उनके उच्च व प्रभावशाली लोगों से सम्पर्क की प्रवृत्ति पर अंकुश लग सकेगा। पुलिस बेड़े में सुधार देने वाले सुझावों में यह भी स्वीकारा गया कि पुलिस थानों से लेकर पुलिसकर्मियों के व्यवहार-काम में तेजी आई है। पिछले कुछ सालों में पुलिस की कार्यप्रणाली के साथ दक्षता में बहुत सुधार हुआ है। साधन-संसाधन के साथ उनके सम्मान में भी इजाफा हुआ है। बावजूद इसके अभी बहुत कुछ सुधार की आवश्यकता है। कहा जाता है कि इन सुझाव पर भी कोई अमल नहीं हो पाया।
रिटायर पुलिसकर्मियों के सुझाव लागू करने थे बताते हैं कि कुछ समय पहले जयपुर मुख्यालय ने पुलिसकर्मियों की समस्या के साथ उनके व्यवहार समेत अन्य के लिए सुधार सुझाव रिटायर पुलिसकर्मियों से लिए थे। इन सुझाव को अमलीजामा पहनाकर सभी जिला एसपी को दिए गए। हालांकि अभी ये सुझाव धरातल पर आ नहीं पाए हैं।
काम के बोझ की मारी जनसंख्या बढ़ी पर उसके अनुपात में नफरी नहीं बढ़ी। पुलिस का मुख्य काम अपराध रोकना व अनुसंधान करना है, लेकिन पुलिस को वीआईपी को एस्कॉर्ट भी करना पड़ता है तो जुलूस/विरोध प्रदर्शन से लेकर सभा/अन्य आयोजन में ड्यूटी देनी पड़ती है सो अलग। ऐसे में कम नफरी में साप्ताहिक अवकाश की परिकल्पना कैसे सच होगी।