शिक्षकों ने किया ड्रेस कोड़ का समर्थन
राजस्थान पत्रिका एवं जिला प्रशासन की पहल पर चल रहे अभियान के प्रति शिक्षकों ने जताई सहमति
Guinani school again operated in single innings
नागौर. शहर के कस्तूरबागांधी आवासीय बालिका विद्यालय में सोमवार से शुरू हुए शिक्षकों के ग्रीष्मकालीन शिविर में राजकीय विद्यालयों के संस्था प्रधानों व शिक्षकों के ड्रेस कोड में होने को लेकर चर्चा की गई। शिक्षकों ने माना कि ड्रेस कोड में आने की स्थिति में विद्यालयों के अंदर शैक्षिक वातावरण बनने के साथ ही बच्चों में भी अनुशासन की भावना आएगी। शिविर प्रभारी अर्जुनराम जाजड़ा ने संभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि बच्चों के साथ विद्यालयों के संस्था प्रधान व शिक्षक भी ड्रेस कोड में आएंगे तो निश्चित रूप से बच्चों में अच्छा संदेश जाएगा। इससे विद्यालयों में एक बेहतर शैक्षिक वातावरण का निर्माण होगा। स्कूलों में आज नामांकन अभियान चलाना पड़ रहा हैं। स्पष्ट है यदि स्कूलों में बच्चों का पर्याप्त नामांकन होता तो फिर इसकी आवश्यकता ही नहीं पड़ती। पर्याप्त नामांकन के अभाव में प्रदेश में कई स्कूलों को मर्ज कर
दिया गया।
इस स्थिति से बचना है तो शिक्षकों को खुद बदलाव के रास्ते पर चलना ही होगा। निजी शिक्षण संस्थानों से मुकाबला करने के लिए उसी की तर्ज पर विद्यालय को नए कलेवर में ढालना पड़ेगा। यह कार्य तभी हो सकेगा, जब शिक्षक खुद ही बदलाव की ओर अग्रसर होंगे। इस दौरान शिविर प्रभारी चौधरी ने शिक्षकों से कहा कि यह स्वैच्छिक है। इसके प्रति वह अपना समर्थन या विरोध सांकेतिक रूप से अभी बता दें। इस पर ज्यादातर शिक्षकों ने एक स्वर से ड्रेस कोड लागू करने अपनी सहमति जताई। सभी सरकारी भवनों का रंग एक जैसा हो।
शिक्षक गणवेश में नजर आएं। गले में परिचय पत्र टंगा हो।
शुरूआती कक्षाओं में डिजिटल क्लास रूम बने।
शुरूआती कक्षाओं में खेल-खेल में सीखे पद्धति अपनाई जाए। कक्षाओं में शैक्षिक पेंटिग्स कराई जाए। जैसा कि निजी स्कूलों के प्ले ग्रुप के लिए होती है।
क्लीन स्कूल, ग्रीन स्कूल होना चाहिए ( हर स्कूल के मैदान में पौधरोपण हो, बच्चों को सफाई के लिए शुरू से ही प्रेरित किया जाए। स्कूल में डस्टबिन हो)
संगीतमय प्रार्थना सभा हो। हर दिन विद्यार्थियों की अभिव्यक्ति की क्षमता को उभारने के लिए उन्हें प्रार्थना सभा में सुभाषित या थॉट ऑफ द डे, बोलना सिखाया जाए।
वालंटियर टीचर ( जिन स्कूलों के शिक्षकों की कमी हो वहां गांव, कस्बे या शहर के शिक्षित युवाओं को वालंटियर टीचर के रूप में जोड़ा जाए, ताकि शिक्षण कार्य प्रभावित न हो)
सप्ताह में एक दिन स्पोर्टस ट्रेनर को बुलाकर अलग-अलग खेलों की बारीकियां सिखाना। स्वतंत्रता दिवस के लिए मार्च पॉस्ट की तैयारी।
हर शनिवार किसी ओरेटर (प्रेरक व्यक्तित्व) या सेलीब्रिटी को विद्यार्थियों से रूबरू कराया जाए। ताकि उनके संघर्ष व सफलता की कहानी से बच्चे प्रेरित हो सके।
स्कूल में पढकऱ आईएएस, आईएफएस, आईपीएस, आरएएस, आरजेएस, डॉक्टर्स, इंजीनियर, सफल राजनेता (कम से कम विधायक, सांसद बने हों, लेकिन दागी न हों) के नाम रोल मॉडल के रूप में स्कूल के बोर्ड पर लिखे हों।
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