समर्पण का भाव ऐसा
अमूमन अधिकांश जगह अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी तोली जाती है। उसके वजन के हिसाब से शुल्क लिया जाता है। यहां ऐसा कुछ नहीं है। समाज के कुछ लोग ही यह कार्य करते हैं। लकड़ी की एवज में सामथ्र्य के हिसाब से कोई कुछ भी दे। अत्यंत गरीब हो तो उससे कुछ नहीं लिया जाता। साथ ही उसके हरिद्वार जाने ही नहीं मृत्युभोज समेत अन्य कार्यों में भी समाज के लोग ही अपना सहयोग देते हैं।
हर क्रिया-कर्म में सारे काम के जिम्मेदार
यही नहीं समाज के पांच-छह लोग मृत्यु हो जाने पर सबसे पहले उस घर में पहुंचते हैं और इसमें काम आने वाली सारी सामग्री ये ही लाते हैं। शव जलाने तक सारा कार्य भी ये टीम करती है। अंतिम संस्कार की सामग्री तक पहले स्वयं खरीदते हैं। कोई हिसाब देवे तो ठीक वरना ये किसी से मांगते नहीं है। समाज के जुगल किशोर रोडा, बालकिशन डांवर, घनश्याम मौसूण, चंदनमल रोडा, माणकचंद मांडण, दामोदर मांडण, दुर्गाशंकर रोडा, रवीन्द्र रोडा आदि ने बरसों से अपनी जिम्मेदारी संभाल रखी है।
शिव मंदिर के साथ खूब हरियाली
इस मोक्ष धाम की खूबसूरत बात यह है कि इसमें शिवजी का मंदिर भी है। जहां सावन में हर सोमवार को रुद्राभिषेक होता है। सुनने में अचरज लगेगा यहां परिंदों के लिए एक विशेष कक्ष बना रखा है। पानी से लेकर हर जरूरी सामग्री का इंतजाम है। किसी से पैसा यहां मांगा नहीं जाता, जिसके जो बस की हो वो दे देता है। तरह-तरह के पौधे लगाकर चंदनमल बरसों से उनकी देखभाल कर रहे हैं। रुद्राक्ष ही नहीं आम, बादाम समेत अनेक पौधे अब बड़े हो रहे हैं।
श्रमदान के लिए हमेशा तैयार
चंदनमल रोडा के साथ शीतल कुकरा, सोहनलाल सहदेव, नरेन्द्र सोनी, गणपत मांडण, राठौड़ी कुआं निवासी नरेन्द्र सोनी, किशन डांवर समेत कई युवक व समाज बंधु हैं जो मोक्षधाम में श्रम से लेकर किसी की विपदा तक सदैव सहयोग के लिए तैयार रहते हैं।