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नागौर

मेहनत और जज्बे ने आखिर बदल ही डाली मोक्षधाम की सूरत

कोई हिसाब-किताब नहीं, परिंदे भी रोजाना आते हैं यहां दाना चुगने-रोटी खाने,

नागौरJan 15, 2018 / 11:40 pm

Dharmendra gaur

Nagaur News

नागौर. राठौड़ी कुआं स्थित मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज का हरा भरा मोक्ष धाम।

शिव मंदिर में सारे दिन गूंजती है भजनों की स्वर लहरियां
नागौर. बहुतेरी जिंदगी वहां भी पल रहीं होती हैं जहां जिंदगी से विदा लिए शख्स की अंतिम यात्रा पहुंचती है। यहां रोजाना परिंदे अपने तय समय पर आते हैं। चुग्गा हो या रोटी, उन्हें मिलता है। वीरान मानी जाने वाली इस जगह पर नाना प्रकार के पेड़-पौधे यह बताने के लिए काफी हैं कि कोशिश यहां भी जारी है। कहने- सुनने में अजीब/बेवजह लगता हो, लेकिन सच यही है। नागौर के राठौड़ी कुआं स्थित मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के मोक्ष धाम की बदली सूरत यह बताती है कि चालीस बरस के सफर में यहां वो सब जुटाने की कोशिश की जा रही है जो बहुत ज्यादा जरूरी है। परिंदों की तो छोडि़ए यहां मदद का एक दरिया बहता है, जो वक्त-जरूरत पर सबको भिगोता है।
समाज के चंदनमल रोडा (सीएम) यूं तो अल्पबचत अभिकर्ता हैं, बावजूद इसके तकरीबन चालीस बरस से वे इस मोक्षधाम में रोजाना श्रमदान कर रहे हैं। साफ-सफाई से लेकर हरियाली को संवारने के लिए पानी देने जैसा कार्य उनकी ड्यूटी में शामिल है। तंगहाली में बीते बचपन से समाज सेवा की लगन बरकरार है। समाज ही नहीं बल्कि हर किसी असहाय व्यक्ति के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। साथ ही स्वच्छता व सहायता की सीख हर किसी को देते हैं। जो बन पड़ता है खुद कर देते हैं, साथ में समाज के कई बाशिंदे हर पल सहयोग करते हैं। रोजाना चिता जलने का शगल हो पर परिंदे से लेकर हर जिंदा को मदद देने का अनूठा उदाहरण भी यहीं मिलता है।

समर्पण का भाव ऐसा
अमूमन अधिकांश जगह अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी तोली जाती है। उसके वजन के हिसाब से शुल्क लिया जाता है। यहां ऐसा कुछ नहीं है। समाज के कुछ लोग ही यह कार्य करते हैं। लकड़ी की एवज में सामथ्र्य के हिसाब से कोई कुछ भी दे। अत्यंत गरीब हो तो उससे कुछ नहीं लिया जाता। साथ ही उसके हरिद्वार जाने ही नहीं मृत्युभोज समेत अन्य कार्यों में भी समाज के लोग ही अपना सहयोग देते हैं।

हर क्रिया-कर्म में सारे काम के जिम्मेदार
यही नहीं समाज के पांच-छह लोग मृत्यु हो जाने पर सबसे पहले उस घर में पहुंचते हैं और इसमें काम आने वाली सारी सामग्री ये ही लाते हैं। शव जलाने तक सारा कार्य भी ये टीम करती है। अंतिम संस्कार की सामग्री तक पहले स्वयं खरीदते हैं। कोई हिसाब देवे तो ठीक वरना ये किसी से मांगते नहीं है। समाज के जुगल किशोर रोडा, बालकिशन डांवर, घनश्याम मौसूण, चंदनमल रोडा, माणकचंद मांडण, दामोदर मांडण, दुर्गाशंकर रोडा, रवीन्द्र रोडा आदि ने बरसों से अपनी जिम्मेदारी संभाल रखी है।

शिव मंदिर के साथ खूब हरियाली
इस मोक्ष धाम की खूबसूरत बात यह है कि इसमें शिवजी का मंदिर भी है। जहां सावन में हर सोमवार को रुद्राभिषेक होता है। सुनने में अचरज लगेगा यहां परिंदों के लिए एक विशेष कक्ष बना रखा है। पानी से लेकर हर जरूरी सामग्री का इंतजाम है। किसी से पैसा यहां मांगा नहीं जाता, जिसके जो बस की हो वो दे देता है। तरह-तरह के पौधे लगाकर चंदनमल बरसों से उनकी देखभाल कर रहे हैं। रुद्राक्ष ही नहीं आम, बादाम समेत अनेक पौधे अब बड़े हो रहे हैं।

श्रमदान के लिए हमेशा तैयार
चंदनमल रोडा के साथ शीतल कुकरा, सोहनलाल सहदेव, नरेन्द्र सोनी, गणपत मांडण, राठौड़ी कुआं निवासी नरेन्द्र सोनी, किशन डांवर समेत कई युवक व समाज बंधु हैं जो मोक्षधाम में श्रम से लेकर किसी की विपदा तक सदैव सहयोग के लिए तैयार रहते हैं।

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