क्यों नजर नहीं आते पांव के छाले व आंखो मे झलक रही पीड़ा
पत्रिका टीम जब नमक क्यारियों में काम कर रहे मजूदरों के पास पहुंची तो यहां पर टपरी (घास-फूस से बनी छान) में कुछ मजदूर सुस्ताते नजर आए। यहां एक टपरी मे मोहम्मद बशीर, रामूराम, सीताराम, राजूराम, राकेश, जगदीश व छोटूराम बैठे थे। मोहम्मद बशीर, रामूराम सहित अन्य ने बताया कि पैर रक्षक जूते नहीं होने के कारण नंगे पांव नमक की क्यारियों में काम करते हैं। घंटों नमक के पानी में रहने से पैर में घाव, छाले नासूर बन जाते हैं। मजदूरों ने बताया कि पेट पालने के लिए मजदूरी करनी पड़ रही है, नमक से हुए घाव पर प्लास्टिक व कपड़ा बांध कर काम करते हैं। ऐसे में जब कपड़ा घाव को नमक के पानी से बचा नहीं पाता है और नमक घाव पर लगता हो तो पीड़ा से हाल बेहाल हो जाता है। मजदूरों की माने तो यहां पर स्वास्थ्य शिविर का आयोजन भी नहीं होता। मोहम्मद बशीर ने बताया कि डीडवाना मे शिविर लगता हो तो उसकी जानकारी नहीं है।
पूरे नहीं आते जूते
कनिष्ठ सहायक चुन्नीलाल मेहला ने बताया कि जयपुर के उद्योग विभाग कमिश्रर द्वारा जिला उद्योग केन्द्र के महाप्रबंधक को जूते भिजवाए जाते हैं, उसके बाद डीडवाना आते हैं। अधिकतर सौ से ज्यादा जूते नहीं आते हैं जबकि यहां दो हजार से ज्यादा मजूदर काम कर रहे हैं। ऐसे में पहले आओ पहले पाओ के सिद्धांत पर जूते वितरित किए जाते हैं जो कि ऊंट के मुहं मे जीरा जितनी आवश्यकता को पूरा कर पाते है। 18 दिसम्बर 2018 के बाद तो यहां मजदूरों को जूते वितरित ही नहीं किए। ऐसे मे अनेको मजदूर है जिनके पास पैर रक्षक जूते नहीं है।
इनका कहना-
पहले एक बार वहां गया था। उस समस्य लाइट समस्या के बारे में बताया था, जिसके लिए संबंधित विभाग को सूचना दे दी गई। लाइट की समस्या तो थी, जूतों के बारे में जानकारी नहीं है, मैं पता करता हूं।
सुशील कुमार छाबड़ा, महाप्रबंधक जिला उद्योग केन्द्र।