आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि अर्थात भड़ल्या नवमी को विवाह आदि मांगलिक कार्यों के लिए अबूझ मुहूर्त माना जाता है। यह अक्षय तृतीया जैसा ही मुहूर्त माना गया है। बुधवार को देवशयनी एकादशी के बाद इन कार्यों पर रोक लग गई। यही कारण रहा भडल्या नवमी पर कई शादियां सम्पन्न कराई गई।
पं. सुनील दाधीच के अनुसार भड़ल्या नवमी के बाद 30 जून को भी विवाह का मुहूर्त रहा। 29 की रात्रि में गुरु ने अपनी स्व राशि धनु में पुन: प्रवेश किया। एक जुलाई को देवशयनी एकादशी से देवों के शयन की परंपरा है। ऐसे में जब तक देव सोए रहेंगे तब तक विवाह आदि शुभ कार्य नहीं किए जा सकते। ऐसे में लोग अब कोई भी शुभ कार्य पांच महीने बाद ही कर पाएंगे।
देवशयनी एकादशी के साथ ही चातुर्मास शुरू हो गया। इसमें भगवान की उपासना, व्रत, जप, पूजन, दान आदि कार्यों का महत्व बढ़ जाता है। इस बार आश्विन अधिक मास के चलते चातुर्मास 4 की जगह 5 माह का माना गया है। देव उठनी एकादशी पर चातुर्मास समाप्त होगा। देवउठनी एकादशी 25 नवंबर को है तो इस दिन से ही मांगलिक कार्य शुरू हो सकेंगे।
इस बार चातुर्मास के दौरान ही पुरुषोत्तम मास है इसलिए यह चार के बजाय पांच माह का रहेगा। इस दौरान विवाह आदि कार्यक्रम नहीं होंगे। गृह प्रवेश, शिलान्यास, सगाई, वाहन क्रय, दुकान, फैक्ट्री आदि सामान्य मुहुत्र्त के कार्य हो सकेंगे। सावन मास में शंकर भगवान का अभिषेक एवं अन्य धार्मिक आयोजन होते रहेंगे।
– पं. सुनील दाधीच, ज्योतिषी एवं आचार्य, नागौर