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जबलपुर

दो शिक्षकों के भरोसे दो सौ बच्चे !

एक से आठ तक की कक्षाएं। करीब दो सौ बच्चे। पोषाहार बनाने से लेकर वितरण तक का कार्य । एक साल से कर रहे शिक्षक लगाने की मांग। ग्रामीणों की सुनवाई नहीं कर रहे डीईओ ।

जबलपुरJul 28, 2016 / 10:46 am

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नागौर. राष्ट्रीय कार्यक्रमों में ड्यूटी अलग। माह में नोडल केन्द्र की बैठक। डाक देने और एक दिन बैंक से वेतन लेने सहित अन्य कार्य। यह हाल है खींवसर पंचायत समिति के गांव आकला स्थित राउप्रावि संख्या ३ का। कहने को तो यह स्कूल आदर्श है लेकिन यहां ९४ छात्राओं समेत कुल १७४ बच्चों की पढ़ाई रामभरोसे है। ग्रामीणों की मांग के बावजूद विभागीय अधिकारी शिक्षक नहीं लगा रहे हैं।
शिक्षा से वंचित हैं छात्र-छात्राएं

ग्रामीण पुखराज गौड़ बताते हैं कि पिछले एक साल से स्कूल में अध्यापक लगाने के लिए कभी सरकारी कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं तो कभी कलक्टर के यहां फरियाद लगा रहे हैं। यहां आठ कक्षाओं की जिम्मेदारी मात्र दो शिक्षकों पर है। जब शिक्षक पांचवीं या आठवीं कक्षा के छात्रों को पढ़ाते हैं तो अन्य कक्षाओं के छात्र कैसे शिक्षा लेंगे। आलम यह है कि सभी कक्षाओं के छात्र एक साथ बिठाने पड़ते हैं।
छात्राएं हो रही शिक्षा से वंचित 

मंगलवार को कलक्टर को ज्ञापन देने आए आकला के विजय गौड़,बाबुलाल सियाग, सुनील, सत्यनारायण गौड़, ओमप्रकाश,धन्नाराम, प्रकाश व अन्य ग्रामीणों ने बताया कि गत एक साल से स्कूल में शिक्षक लगाने की मांग कर रहे हैं लेकिन प्रशासन व शिक्षा विभाग सुनवाई नहीं कर रहा है। स्कूल में ९४ छात्राएं है लेकिन स्टाफ नहीं होने से आसपास की ढाणियों से कई छात्राएं स्कूल ही नहीं आती। 
बच्चों की रहती है छुट्टी 

ग्रामीणों का कहना है कि राज्य सरकार एवं प्रशासन शिक्षकों को बहुउद्देशीय कर्मचारी मानकर उनकी ड्यूटी बीएलओ, ई ग्राम प्रभारी तथा कई प्रकार के सर्वे में लगा देते हैं। आए दिन विभाग की ओर से तरह-तरह की सूचनाएं बनाने, आदान-प्रदान में शिक्षकों को स्कूल बंद कर ताला डालना पड़ता है। शिक्षकों को महीने में नोडल केन्द्र पर डाक देने, एक दिन बैंक से वेतन लेने एवं ब्लॉक शिक्षा अधिकारी कार्यालय की मासिक बैठक सहित अन्य कार्य रहते हैं। ऐसे में मजबूरन बच्चों की छुट्टी करनी पड़ती है।
नौकरी शिक्षक की कर रहे बाबूगिरी

सड़क किनारे एवं शहर के नजदीकी स्थानों पर आवश्यकता से अधिक शिक्षक स्कूलों में जमे हुए हैं। वहीं प्रारंभिक शिक्षा के अनेक शिक्षक वर्षों से माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत हैं। इन्हें यदि एकल शिक्षक वाले स्कूलों में लगाया जाए तो काफी हद तक शैक्षिक व्यवस्था सुधारी जा सकती है। आलम यह है कि कई शिक्षक राजनीतिक आकाओं की शह पर बीईईओ एवं डीईओ समेत अन्य कार्यालयों में बाबूगिरी कर रहे हैं।
निजी स्कूलों में जा रहे बच्चे 

प्राथमिक शिक्षा के गुणात्मक सुधार के लिए राज्य व केन्द्र सरकार नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिनियम, सीसीई, रीडिंग कैम्पेन, शिक्षा सम्बल महाभियान चला रहे हैं लेकिन इनके उद्देश्यों की पूर्ति नहीं हो रही। सरकार शिक्षा के नाम पर लाखों रुपए खर्च कर रही है, लेकिन ऐसे हालात में बच्चे कैसे शिक्षित होंगे। यह प्रश्न अभिभावकों को चिंता में डाले हुए है। सारी जिम्मेदारियों का बोझ उठाने वाले शिक्षक भी पशोपेश में है। यही कारण है कि सरकारी स्कूलों के बच्चे निजी स्कूलों का रुख कर रहे हैं।
तत्काल हो शिक्षकों की नियुक्ति 

शिक्षा मंत्री को खबर नहीं होती और दूसरे मंत्री उनके विभाग में हस्तक्षेप कर लेते हैं। आकला में दो सौ बच्चों पर दो शिक्षक पर्याप्त नहीं है। सरकार को बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए यहां शिक्षक लगाने चाहिए। 
हनुमान बेनीवाल, विधायक खींवसर


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