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नागदा

यहां तीन रूपों में दर्शन देती हैं मां चामुंडा

हजारों दर्शनार्थी दूर-दूर से मातारानी के दर्शन के लिए आते हैं

नागदाOct 12, 2018 / 01:41 am

Lalit Saxena

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रूनीजा (श्याम पुरोहित ) आज हम आपको एक ऐसे पौराणिक एवं ऐतिहासिक मंदिर की सैर कराते है, जहां मां चामुंडा तीन रूपों में दर्शन देती है। यह मंदिर रतलाम से 30 किमी दूर रतलाम महू बड़ी लाइन के रूनीजा स्टेशन के पास एवं भगवान महाकाल के मंदिर से 65 किमी दूर रतलाम रोड पर चामुंडाधाम गजनीखेड़ी के नाम से जाना जाता है। इस पूर्वाभिमुख मंदिर का ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व हैं। इस मंदिर में चामुंडा माता की गर्भगृह में प्रमुख एंजिल प्रतिमा विराजमान हैं। इसके अतिरिक्त गर्भगृह में स्कन्द माता, प्रति स्कन्द माता एवं भगवान श्रीगणेश की प्रतिमाएं विराजमान हैं। भगवान गणेश की प्रतिमा अत्यंत विशिष्ट हैं। यह प्रतिमा विश्व में दो या तीन बताई जाती हैं। 11वीं सदी का निर्मित यह मंदिर भूमिज शैली का उत्कृष्ट नमूना हैं। यह मंदिर गर्भगृह, अंतराल तथा मंडप तीन भाग में निर्मित हैं। मंदिर के पाŸव भाग में अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं।
मंदिर परिसर में राजपूत राजाओं की विशाल एवं सुंदर क्षत्रिया बनी हुई हैं, साथ ही यहां के गिरी समाज के पुजारियों की जिंदा समाधिया है। परिसर में एक सुंदर जलकुंड हैं। मंदिर के बारे में कई किवंदतिया प्रचलित हैं, जिनमें से एक यह हैं कि मां चामुंडा तीन रूपों में दिखाई देती हैं। प्रात: बाल रूप, दोपहर में युवावस्था एवं संध्या में अवस्था में दृष्टि गोचर होती हैं। सूर्य की पहली किरण सीधी माता के चरणों में पड़ती है। कहते हैं की मोहम्मद गजनवी की सेना ने यहां पड़ाव डाला था और इस मंदिर को लूटा और विशाल शिखर को ढहाया गया। इस कारण निकटस्थ गांव का नाम गजनीखेड़ी पड़ा। इस गांव में आज भी फौज का पड़ाव के नाम से एक विशाल मैदान स्थित हैं। पहले इस मंदिर पर जाने के लिए दुर्गम रास्ता था। आज शानदार सड़क है। मंदिर के विकास के लिए श्री चामुंडा माता मंदिर सामाजिक कल्याण संस्था के नाम से यहां एक ट्रस्ट का गठन किया गया हैं, जो परिसर को एक बेहतरीन पिकनिक स्पॉट बनाने और सौंदर्यीकरण के लिए काम करता हैं। यहां यात्रियों को ठहरने के लिए धर्मशाला हैं और एक विशाल चद्दर शेड गत दिनों बनाया गया है। बच्चों के मनोरंजन के लिए झूले भी लगे भी हैं। खूबसूरत बगीचा हैं। नवरात्रि में प्रतिदिन हजारों दर्शनार्थी दूर-दूर से मातारानी के दर्शन के लिए आते हैं।

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