इसके बिना वे स्थानीय ग्रामीणों से आपसी संवाद भी नहीं कर पा रहे थे। इसके साथ ही अन्य कई तरह की समस्याएं भी उनके सामने रोजाना खड़ी होती थी। हालांकि जवानों की जिले में तैनाती से पहले ही यहां की वस्तुस्थिति के साथ ही इलाके की पूरी जानकारी दी तो गई, लेकिन स्थानीय भाषा-बोली का ज्ञान जवानों के लिए माओवादियों से लडऩे से ज्यादा बड़ी समस्या बनती जा रही थी। हालांकि जवानों ने इसका तोड़ निकालते हुए, इलाके में संचालित हो रहे स्कूलों में अपनी सेवाएं देनी शुरू की और यही से जवानों की स्थानीय बोली-भाषा का प्रशिक्षण भी शुरू हो गया। सुरक्षा के लिहाज से जवानों ने अभी फि लहाल हड़ेली के ही स्कूलों में अपनी सेवाएं देते देखे जा सकते हैं।
अंदरूनी इलाके का मिला फायदा
अंदरूनी इलाका होने के चलते यहां तैनात सरकारी अमला बहुत कम ही इलाके में अपनी उपस्थिति दे पाता हैं। यह जवानों के लिए प्लस पाइंट हो गया और जवानों ने जहां जैसी आवश्यकता जान पड़ी वे अपनी सेवाएं देने पहुंचने लगे। इससे इलाके में उनकी धीरे-धीरे अच्छी पकड़ भी हो गई और ग्रामीण अब जवानों की बातें भी समझते है और जवान भी ग्रामीणों की बोली-भाषा में जैसे-तैसे कर बातबीच लेते हैं। आइटीबीपी के यहां पहुंचने के बाद ही इलाके में सड़क एवं सरकारी सुविधाएं अब आसानी से पहुंच पा रही हैं। इसके साथ ही इलाके से आइटीबीपी 41 वाहिनी के कमांडेट के मार्गदर्शन में जवानों ने यहां से कई प्रतिभाओं को छानकर निकाल राज्य व राष्ट्रीय स्तर की स्पर्धाओं के लिए तैयार किया और वो बेहतर प्रयास कर रहे हैं। इन्ही कार्यो के लिए उन्हें जिला व राज्य स्तर पर सम्मानित भी किया जा चुका हैं।
इलाके की समस्याओं को देखकर हमने सेवाएं देनी शुरू की और इससे हमें भी काफ ी फ ायदा हुआ स्थानीय बोली-भाषा की समझ अब हमारे जावानों को भी हो गई हैं। यहां के बच्चों के लिए अपनी कई योजनाएं हैं।
राधेश्याम, कमांडेंट आइटीबीपी-41