11 अगस्त 1955 को महू छावनी से सुबह करीब 11 बजे गोवा सत्याग्रह में जाने वाले सत्याग्रहियों का जत्था रेलवे स्टेशन महू की ओर जा रहा था। नारों और बैंड बाजे की आवाज से गगन गूंज रहा था।
मैं रमेशचंद्र और मेरा दोस्त रमेश शर्मा जो की फौज से छुट्टी पर आए थे। हम दोनों कंपनी बाग के रोड पर खड़े थे। दोनों में अचानक देशप्रेम की भावना जागी, हम भी गोवा सत्याग्रह के जत्थे में शामिल हो गए।
जत्थे का नेतृत्व बद्रीप्रसाद कामरेड कर रहे थे। सोमा भाई साहब महू छावनी कांग्रेस अध्यक्ष ने हमें सीने से लगाया और पीथ थपथपाकर बोले, जत्थे में तुम सबसे कम उम्र (25 बरस) के हो। आश्चर्य व्यक्त करते हुए बोले- घर जाकर माता-पिता की आज्ञा लेकर आओ। तब मैंने कहा- बलिदान देने वालों के लिए आज्ञा की नहीं आशीर्वाद की जरूरत होती है, जो आपसे मिल गया। आकाश में नारे गूंजने लगे ‘लाठी गोली खाएंगे, फिर भी गोवा जाएंगे’।
-जैसा स्व. रमेशचंद्र सैनी के पौत्र नीतेश सैनी ने बताया
गोवा सत्याग्रही स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. रमेशचंद्र सैनी मूलत: राजस्थान के उचैरा गांव के रहने वाले थे। उनके पौत्र नीतेश बताते हैं कि इंदौर महू कैंट को दादा रमेशचंद्र ने ही बसाया था। स्व. रमेशचंद्र सैनी के चार बेटे विनोद, संजय, सुनील और स्व. राजेश सैनी हैं। दादा रमेशचंद्र का संस्मरण सुना रहे नीतेश के पिता स्व. राजेश सैनी थे।