वैसे नरसिंहपुर सीट से प्रत्याशी घोषित करने में पार्टियां लोधी समाज को प्रमुखता देती रही हैं। इस बार इस समाज से कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों ने अपने प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारे हैं। इस स्थिति में लोधी वोटर दोनों दलों के प्रत्याशियों में समान रूप से बंटने की राजनीतिक चर्चा है। इस स्थिति में ब्राह्मण, मांझी और कुर्मी समाज की भूमिका अहम हो गई है। इस विधानसभा में ये तीनों समाज मिलकर चुनाव की तस्वीर बदल सकते हैं।
गाडरवारा में प्रत्याशियों की जीत हार का फैसला कौरव और ब्राह्मण वोटर करते आए हैं। इस बार किसी भी प्रत्याशी की जीत हार इन्हीं के थोक वोट पर निर्भर करेगी। राजनीतिक रूप से इन्हीं समाजों के नेताओं का यहां प्रभाव रहा है। कांग्रेस और भाजपा में इन्हीं समाजों के नेता अधिकांश चुनाव में पार्टी का चेहरा बनते आए हैं।
आरक्षित सीट गोटेगांव में अजा जजा वर्ग का वोट बैंक किसी भी प्रत्याशी की हार जीत तय करता है। वैसे यहां लोधी, कोटवार और कुर्मी वोटर भी पर्याप्त संख्या में हैं जो राजनीतिक धु्रवीकरण के बीच अपनी वजनदारी साबित करते हैं।
यह सीट जातिगत समीकरणों के लिहाज से कौरव, किरार बाहुल्य मानी जाती है पर इस सीट की खासियत यह रही है कि यहां से हमेशा किरार समाज का नेता विधायक नहीं रहा है, इस सीट से कौरव, किरार के अलावा ब्राह्मण, जाट समाज के नेताओं को भी यहां के मतदाताओं ने अपना विधायक चुना है।
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