नुकसान झेल रहे रुई कारीगर
नरसिंहपुर•Dec 17, 2018 / 06:39 pm•
ajay khare
Rajai
गाडरवारा। बदलते वक्त के साथ अनेक प्राचीन वस्तुए आधुनिकता की मार में लुप्त् होने की कगार पर पहुंच गई हैं। इससे उनके बनाने वाले कारीगरों को संकट का सामना करना पड़ता है। इन दिनों नगर के विभिन्न हिस्सों में रजाई गददे की दुकानें सजने लगी हैं। जहां कारीगर रुई धुनक कर धागे से तगाई कर रजाई गददे तैयार करते हैं। जहां लोग रजाई के खोल में पुरानी या नई रुई भरवा कर सर्दी में ठंड से बचने का इंतजाम करने आते हैं। ऐसे ही एक कारीगर चांद खान ने बताया कि पहले की तुलना में इस काम में हमारा धंध मात्र एक चौथाई ही बचा है। लेकिन कुछ लोग आज भी देशी, हाथ के बने रजाई गददे ही प्रयोग करते हैं। उन्ही के सहारे हमारी दुकानदारी चल रही है। आज के आधुनिक समय में अधिकतर लोग दुकानों पर से रेडीमेड कंबल, जयपुरी रेडीमेड रजाई, गददे ही खरीदते हैं। दूसरी ओर होटल, लॉज, टेंट हाउस आदि में हाथ से बने रजाई गददे अधिक पसंद किए जाते थे। वह भी अब रेडीमेड रजाई, कंबल, फोम के गददे प्रयोग करने लगे हैं। इन दिनों बाजार में रुई के भाव 150 रुपए, 100 एवं 60 रुपए किलो है। लोग अपनी सुविधानुसार रुई भरवाते हैं। जिसके ऐवज में हमें मेहनताना मिल जाता। ग्राहक कम होने से गुजारा भी मुश्किल से चल पाता है। गौरतलब रहे कि आजकल बाजार की छोटी बड़ी दुकानों के अलावा मुहल्ले कॉलोनियों में फेरी लगाकर भी कंबल बेचते हैं। फुटपाथी दुकानों पर भी यह उपलब्ध रहते हैं।
जबसे डबलबैड, सिंगल बैड का प्रचलन हुआ है। तभी से रेडीमेड रजाई, गददे, कंबल का प्रचलन बढ़ा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार बाजार में रेडीमेड कंबल 300 रुपए से लेकर चार पांच हजार रुपए तक क्वालिटी के अनुसार मिल रहे हैं। वहीं कपड़े परंपरागत रजाई के खोल 100 से 300 रुपए तक रेंज के बेचे जा रहे हैं। बाजार के दुकानदारों ने भी माना कि रेडीमेड कंबल एवं रजाईयों का प्रचलन अधिक हो गया है। इसकी मार परंपरागत रुई कारीगरों को झेलनी पड़ रही है।
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