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नरसिंहपुर

किसानों को यूरिया की किल्लत

सोसायटियों से कम, प्राइवेट दुकानों से महंगे दामों पर मिल रहा यूरिया

नरसिंहपुरDec 29, 2018 / 06:43 pm

ajay khare

urea

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पनागर- गाडरवारा। केंद्र एवं राज्य में किसी भी दल की सरकार रहे, किसानों को किसी न किसी बहाने कतारों में लगना एवं कमी झेलनी पड़ती है। किसानों को समर्थन मूृल्य पर फसल बेचने के पंजीयन से लेकर भुगतान एवं जगह जगह लाइन में धक्के खाने पड़ते हैं। साथ ही किसानों का कहना है कि रासायनिक खाद, यूरिया की कमी प्रतिवर्ष सीजन पर झेलनी पड़ती है। जबकि राजस्व विभाग पटवारियों द्वारा फसलों का सर्वे कर गिरदावरी पोर्टल में अपलोड कर दिया है। जिससे रबी सीजन एवं खरीफ सीजन में किसानों द्वारा बोई गई कुल एकड़ का हल्कावार आंकड़ा निकल आता है। फिर शासन को उतने एकड़ का खाद उपलब्ध करके रखना चाहिए। क्योंकि समय निश्चित रहता है कि इतने खाद की जरूरत होगी। पूरी तहसील भर में किसान सोसायटियों में यूरिया की कमी बता रहे हैं। साथ ही किसानों ने बताया है कि कुछ प्राइवेट दुकानों पर महंगे दामों पर यूरिया मिल जाता है। जहां किसान को ज्यादा कीमत अदा कर कालाबाजारी का शिकार होना पड़ता है। प्रदेश में सरकार बदलने के बाद यूरिया की कमी को लेकर राजनैतिक दल एकदूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। वहीं किसान यूरिया आने की खबर पाते ही लाईन लगाकर खड़ा हो रहा है।
मंडी में आया दो गाड़ी यूरिया
शनिवार को मंडी में दो गाड़ी यूरिया की आवक होने का पता चलते ही किसान जमा हो गए। बाद में पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में आधार कार्ड के आधार पर प्रति किसान दो बोरी यूरिया प्रदान किया गया। इसमें लगभग 270 रुपए की दर से 45 किलो की पैकिंग में यूरिया प्रदान किया गया। इसे लेकर किसानों का कहना था कि हमें कम से कम चार बोरी यूरिया दिया जाना था। बताया गया है कि इसके पूर्व शुक्रवार को भी मंडी में यूरिया के दो ट्रक आए थे।
यह कहते किसान
आज गांव गांव में शराब आसानी से मिल जाती है। लेकिन किसानों को यूरिया लेने काम छोड़ कर शहर भटकना पड़ता है एवं लाईनों में लगना पड़ रहा है।
मनोज अवस्थी, कृषक पलोहाबड़ा
किसी भी सोसायटी में खाद नहीं मिल रहा। इससे किसानों को नाजुक समय में खाद के लिए भटकना पड़ रहा है। किसान को जहां से जैसे भी यूरिया मिलने की आस बंधती है, वहां भटकता है।
फूलसिंह चौधरी, कृषक पनागर
इन दिनों किसानों को यूरिया की किल्लत से जूझना पड़ रहा है। अब यह विभागीय नाकामी है या कोई राजनीतिक साजिश, लेकिन किसान की मुसीबत कम नहीं हो रही।
प्रभुदयाल चौकसे, कृषक सहावन

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