आपको बता दें कि 28 फरवरी 2002 को भड़की हिंसा के दौरान भीड़ ने गुलबर्ग सोसायटी पर हमला कर दिया था। इस हमले में 69 लोग मारे गए थे, जिनमें पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी भी शामिल थे। इसी घटना में लगभग 30 लोग लापता था, जिनको मृत मान लिया गया। मामले की सुनवाई साल 2009 में शुरू हुई थी, जिसमें कुल 66 आरोपी थे। इनमें से चार की पहले ही मौत हो चुकी है। मामले की सुनवाई के दौरान 338 लोगों की गवाही हुई।
इस मामले में एसआईटी ने 66 आरोपियों को नामजद किया था, जिनमें से 9 आरोपी पिछले 14 साल से जेल में हैं, जबकि बाकी आरोपी जमानत पर हैं। एक आरोपी बिपिन पटेल असरवा सीट से बीजेपी का निगम पार्षद है। 2002 में दंगों के वक्त भी बिपिन पटेल निगम पार्षद था।
मोदी को मिली थी क्लीन चिट गौरतलब है कि इसी मामले में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी आरोप लगा था, हालांकि 2010 में उनसे पूछताछ के बाद एसआईटी रिपोर्ट में उन्हें क्लीन चिट दे दी गई थी।
गुलबर्ग सोसाइटी दंगा मामलाः गोधरा कांड के एक दिन बाद यानी 28 फरवरी, 2002 को 20,000 से ज्यादा लोगों की हिंसक भीड ने पूरी गुलबर्ग सोसायटी पर हमला किया। गुलबर्ग सोसायटी में सभी मुस्लिम रहते थे, यहां पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी भी रहते थे। ज्यादातर लोगों को जिंदा जला दिया। 39 लोगों के शव बरामद हुए और अन्य को गुमशुदा बताया गया, लेकिन 7 साल बाद भी उनके बारे में कोई जानकारी न मिलने पर उन्हें मृत मान लिया गया।
8 जून, 2006 को पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी ने पुलिस को एक फरियाद दी, जिसमें उन्होंने इस हत्याकांड के लिए मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और कई मंत्रियों को जिम्मेदार ठहराया। पुलिस ने ये फरियाद लेने से मना कर दिया। 7 नवंबर, 2007 को गुजरात हाईकोर्ट ने भी इस फरियाद को एफआईआर मानकर जांच करवाने से इनकार कर दिया। 26 मार्च, 2008 को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों के 10 बडे केसों की जांच के लिए आर के राघवन की अध्यक्षता में एक एसआईटी बनाई. इनमें गुलबर्ग का मामला भी था। मार्च 2009 में जांच करने का जिम्मा भी सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी को सौंपा। सितंबर 2009 को ट्रायल कोर्ट में गुलबर्ग हत्याकांड की सुनवाई शुरू हुई।