भारत में दुनिया में सबसे ज्यादा भूजल का इस्तेमाल किया जाता है और यह अमरीका और चीन दोनों के कुल इस्तेमाल से भी ज्यादा है। भारत में 253 अरब क्यूबिक मीटल जल निकाला जा रहा है, जो कि दुनिया का 25 फीसदी है। अनुमान है कि अगर यही हालात रहे जो देश के छह शहरों में जल्द ही बेंगलूरु जैसे हालात पैदा हो सकते हैं। यह शहर हैं मुंबई, चेन्नई, जयपुर, लखनऊ और दिल्ली।
बेंगलूरु में आज जो जल संकट हम देख रहे हैं वो अगले कुछ सालों में देश के कई शहरों को अपने जकड़ में ले सकता है। इसका कारण है कि 1.4 करोड़ की आबादी वाला बेंगलूरु कमजोर मॉनसून, लगातार घट रहे भूजल, सूखते जलाशय और अत्यधिक शहरीकरण के साथ जल के कुप्रबंधन की मार झेल रहा है और यह कारण सिर्फ बेंगलूरु तक सीमित नहीं है। इसलिए आज जो कहानी बेंगलूरु की है, कल वह कहानी आपके शहर की भी हो सकती है। मौसम विभाग का जो अनुमान है, वो भी बेंगलुरु में आए इस महा संकट की तस्दीक करता है। कहा जा रहा है कि कर्नाटक का ये शहर ज्यादा गर्म होता जा रहा है, तापमान असामान्य रूप से बढ़ रहा है।
बैंक ऑफ बड़ौदा की रिपोर्ट में कहा गया है कि 14 मार्च 2024 को देश के पूर्वी क्षेत्रों के जलाशयों को छोड़कर देश के सभी क्षेत्रों के जलाशयों में उनकी क्षमता से बहुत कम जल है। बैंगलूरु के मुख्य जलाशय में क्षमता का सिर्फ 16 फीसदी जलभराव शेष है। रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय जल आयोग की निगरानी वाले देश के 150 जलाशयों में सिर्फ 40 फीसदी ही जल शेष है। जबकि पिछले साल इस समय यह अनुपात 47 फीसदी था। इतना ही नहीं, जलाशयों में जलभराव का दस साल का औसत 41 प्रतिशत ठहरता है। इसलिए हालात समग्र स्तर पर भले ही काबू में दिखें पर कुछ क्षेत्रों में हालात काफी गंभीर हैं। दक्षिणी राज्यों में केरल को छोड़कर सभी राज्यों के जलाशयों में जलभराव गिरा है। राजस्थान में भी गिरावट 40 से 48 फीसदी तक दर्ज की गई है। उत्तर के राज्यों में तो गिरावट 39 फीसदी तक है। जबकि पूर्वी क्षेत्र में बिहार और त्रिपुरा को छोड़कर सभी राज्यों में जलस्तर बढ़ा है। सबसे अधिक जलस्तर झारखंड में 65 फीसदी तक देखा गया है।
पिछले साल आई संयुक्त राष्ट्र यूनिवर्सिटी- इंस्टीट्यूट फार एनवायरनमेंट एंड ह्यूमन सिक्योरिटी की ओर से तैयार की गई ‘इंटरक्नेक्टेड डिजास्टर रिस्क रिपोर्ट 2023’ के अनुसार भारत में सिंधु-गंगा के मैदान के कुछ क्षेत्र पहले ही भूजल की कमी के खतरनाक बिंदु को पार कर चुके हैं और पूरे उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में अगले दो साल में भूजल की उपलब्धता का गंभीर संकट सामने आने की आशंका है। रिपोर्ट के अनुसार, 2025 तक इसका असर दिखना भी शुरू हो जाएगा। इसमें कहा गया है कि जैसे ही पानी की कमी होगी, उससे खाद्य उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होगा। इससे दुनियाभर में भी खाद्य संकट गहरा जाएगा।