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सरकारी मानसिक अस्पतालों के निजीकरण का सुझाव

 बंबई हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा संचालित चार मानसिक अस्पतालों की
दुर्दशा पर नाराजगी व्यक्त करते हुए सोमवार को राज्य सरकार को उनकी स्थिति
सुधारने के लिए कदम उठाने का निर्देश देने के साथ ही अस्पतालों के निजीकरण
के बारे में सोचने का सुझाव दिया।

Apr 13, 2015 / 05:14 pm

 बंबई हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा संचालित चार मानसिक अस्पतालों की दुर्दशा पर नाराजगी व्यक्त करते हुए सोमवार को राज्य सरकार को उनकी स्थिति सुधारने के लिए कदम उठाने का निर्देश देने के साथ ही अस्पतालों के निजीकरण के बारे में सोचने का सुझाव दिया।

न्यायाधीश एनएच पाटिल और न्यायाधीश वीएल अचलिया की खंडपीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता व्रुशाली कलाल की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार को ठाणे, पुणे, रत्नागिरी और नागपुर स्थित इन अस्पतालों की हालत सुधारने के लिए उपाय करने और उन उपायों से न्यायालय को अवगत कराने के निर्देश दिए।

 खंडपीठ ने कहा कि इन अस्पतालों की स्थिति बहुत खराब है और इनमें से किसी भी अस्पताल में कोई मनोचिकित्सक अथवा मनोवैज्ञानिक नहीं है। यहां तक कि इन अस्पतालों में मानसिक रोगियों के लिए कोई पुनर्वास कार्यक्रम की व्यवस्था भी नहीं है। उच्च न्यायालय ने इससे पहले न्यायिक अधिकारियों को अस्पतालों का औचक निरीक्षण कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा था।

इन रिपोर्टों के अध्ययन के बाद खंडपीठ ने सरकार से पूछा कि उसने अस्पतालों की स्थिति सुधारने के लिए कौन-कौन से कदम उठाए हैं। न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार को अस्पतालों के निजीकरण के बारे में सोचना चाहिए। इसके साथ सरकार को मानसिक रोगों और उनके लक्षणों के प्रति लोगों में जागरूकता फैलानी चाहिए ताकि लोग जरूरत पडऩे पर मनोचिकित्सक से सलाह लेने में हिचकें नहीं।

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