1893 में अफीम पर लगी रोक –
नशाखोरी रोकने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने 1893 में संसदीय आयोग बनाया था। इसने अफीम पर पाबंदी की सिफारिश की थी। ऊंचे तबके के लोग मदक हाउसेज में अफीम सेवन करते थे। गवर्नर के आदेश पर इन्हें बंद कर दिया। 600 लोग गिरफ्तार किए गए थे।
शराब-कोकीन की ओर बढ़ा झुकाव –
तत्कालीन पुलिस आयुक्त एसएम एडवड्र्स (1909-16) ने नशाखोरी पर एक किताब लिखी थी। उसमें बताया गया है कि मदक हाउसेज बंद होने के बाद अफीम पर झूमने वाले लोगों का झुकाव शराब की ओर बढ़ा। सख्ती के बावजूद अवैध रूप से शराब की तस्करी होती थी। वरदराजन मुदलियार और हाजी मस्तान गिरोह तस्करी में शामिल था। इसी दौरान कोकीन की एंट्री हुई। शुरू में लोग कोकीन को चबाते थे। पुरुष ही नहीं, महिलाएं और बच्चे भी इसका सेवन करते थे।
विदेश से हो रही ड्रग्स की तस्करी –
दस्तावेजों के मुताबिक, कोकीन की तस्करी विदेश से होती थी। 1911 में एक जहाज पर तैनात ऑस्ट्रियाई अपने जूते में छिपा कर कोकीन लाया था। 1912-13 में पुलिस ने 45,500 रुपए और 17 हजार कीमत की कोकीन को दो बड़ी खेप पकड़ी थी। प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत के बाद तस्करी कम हो गई। लेकिन, 1930 के बाद यह फिर तेजी से बढ़ी, जिससे आज तक निजात नहीं मिली है।