गुजरात हाईकोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा कि मुस्लिमों को एक से ज्यादा पत्नी रखने की छूट है पर उनको इस मामले में कुरान या अल्लाह के संदेश का गलत अर्थ नहीं लगाना चाहिए।
गुजरात हाईकोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा कि मुस्लिमों को एक से ज्यादा पत्नी रखने की छूट है पर उनको इस मामले में कुरान या अल्लाह के संदेश का गलत अर्थ नहीं लगाना चाहिए।
कुरान की आयतों व पैगम्बर मोहम्मद साहब के संदेशों को विश्लेषित करते हुए कोर्ट ने कहा कि दूसरा निकाह बहुत मर्यादित परिस्थिति में किया जाना चाहिए। न्यायाधीश जेबी पारदीवाला ने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के जाफर अब्बास रसूल मोहम्मद मर्चेन्ट (48 ) की याचिका को अंशत: मंजूर करते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा, मुस्लिम कानून के हिसाब से युवक पहली पत्नी की मंजूरी के बिना दूसरा निकाह कर सकता है।
इसे भारतीय दंड संहिता की धारा 494 (द्विपत्नीव) के तहत अपराध नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने समान नागरिक संहिता की जरूरत पर बल भी दिया।
यह था मामला
रायपुर के मर्चेन्ट का भावनगर की साजेदा से 1997 में रायपुर में निकाह हुआ। कुछ साल बाद संबंध बिगड़ गए। साजेदा 2001 में ससुराल छोड़कर भावनगर स्थित मायके आ गई। मर्चेन्ट ने 2003 में साजेदा की मंजूरी के बिना दूसरा निकाह कर लिया।
इसके एक वर्ष बाद साजेदा ने मर्चेन्ट के खिलाफ भावनगर पुलिस में द्विपत्नीव तथा दहेज प्रताडऩा का मामला दर्ज करा दिया। मर्चेन्ट ने वर्ष 2010 में हाईकोर्ट में शिकायत रद्द करने की गुहार लगाई।
कहा-मुस्लिम पर्सनल लॉ में दूसरा विवाह द्विपत्नीव नहीं कहलाता है क्योंकि चार विवाह की अनुुमति है। इस मामले में न्यायालय ने एमिकस क्यूरी (अदालत मित्र) एमटीएम ने सुरा-ए-निकाह से आयत का हवाला देते कहा कि एक से ज्यादा विवाह मंजूरी दी गई है पर न सभी के साथ न्याय होना चाहिए।
एेसा निकाह अवैध नहीं
कोर्ट ने मुस्लिमों में 3 विवाह का जिक्र किया। साहिल (वैध), बातिल (अवैधानिक) व फासिद (अमान्यकरणीय)। कहा, यह विवाह अवैधानिक (बातिल) नहीं है। बंधित मामले में द्विपत्नीय के खिलाफ अपराध नहीं बनता।