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38 साल पहले शहीद हुए लांसनायक चंद्रशेखर का पार्थिव शरीर आज पहुंचेगा घर, राजकीय सम्मान से होगा अंतिम संस्कार

Martyr Chandrashekhar Harbola: 38 साल पहले लापता हुए भारतीय सेना के एक जवान का पार्थिव शरीर बीते रविवार को सियाचीन में मिला। 1984 में भारत-पाकिस्तान झड़प के दौरान पेट्रोलिंग पर गए जवान एक ग्लेशियर की चपेट में आकर शहीद हो गए थे। बर्फ में दबे रहने के कारण शहीद के पार्थिव शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है।

Aug 15, 2022 / 12:49 pm

Prabhanshu Ranjan

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Haldwani Soldier Chandrashekhar Harbola body Return Haldwani today After 38 years from Siachen

Martyr Chandrashekhar Harbola: आज पूरा देश आजादी का 75वां सालगिरह मना रहा है। आजादी के बाद देश की सुरक्षित रखने में सबसे बड़ा योगदार देश के जवानों का होता है। सीमा पर तैनात जवानों की वजह से ही हम आराम से अपने घरों में सो पाते हैं। सेना के जवान किस विषम परिस्थिति में देश की रक्षा करते हैं, इसका एक जीता-जागता उदाहरण बीते रविवार को सामने आया। रविवार को भारतीय सेना के जवानों ने 38 साल पहले शहीद हुए एक जवान के शव की तलाश की। आज उस जवान का पार्थिव शरीर उनके घर पहुंच रहा है, जहां राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार होगा।

दरअसल उत्तराखंड के हल्द्वानी निवासी 19 कुमाऊं रेजीमेंट के लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला का पार्थिव शरीर बीते रविवार को 38 साल बाद सियाचीन में खोजा गया। सियाचीन में बर्फ में दबे होने के कारण उनके पार्थिव शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है। चंद्रशेखर के हाथ में बंधे ब्रेसलेट का सहारा लेकर उनकी पहचान मुक्कमल की गई। जिसपर उनका बैच नंबर और अन्य जरूरी जानकारी दर्ज थीं। बैच नंबर से सैनिक के बारे में पूरी जानकारी मिल जाती है। इसके बाद उनके परिजनों को सूचना दी गई।

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आज चंद्रशेखर का पार्थिव शरीर लेकर सेना के जवान उनके घर हल्द्वानी पहुंचेंगे। जहां रानी बाग स्थित चित्रशाला घाट पर उनका पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार होगा। 38 साल बाद चंद्रशेखर का पार्थिव शरीर मिलने की जानकारी जब सार्वजनिक की गई तो मीडिया के लोग उनके घर पहुंचे। जहां उनकी 65 साल की पत्नी शांति देवी, 48 साल की बेटी कविता पांडे हाथों में पिता की पुरानी तस्वीर लिए गुमसुम बैठी दिखी। बताया गया कि जब आखिरी बार चंद्रशेखर अपनी पत्नी शांति से मिले थे तब उनकी उम्र 27 साल थी।


चंद्रशेखर की पत्नी के आंखों के आंसू सुख गए थे। बेटी पिता की मौत के समय बहुत छोटी थी। परिवार वालों ने कभी यह सोचा भी नहीं था कि अब उन्हें चंद्रशेखर के पार्थिव शरीर मिलेगा। चंद्रशेखर के भतीजे ने उस घटना का जिक्र किया जिसमें उनके चाचा लापता हो गए थे। उन्होंने बताया कि भारत-पाकिस्तान की झड़प के दौरान मई 1984 में सियाचिन में पेट्रोलिंग के लिए 20 सैनिकों की टुकड़ी भेजी गई थी। जिसमें चाचा चंद्रशेखर हर्बोला भी शामिल थे।


पेट्रोलिंग के गए ये सभी सैनिक सियाचिन में ग्लेशियर टूटने की वजह से इसकी चपेट में आ गए थे। जिसके बाद किसी भी सैनिक के बचने की उम्मीद नहीं थी। भारत सरकार और सेना की ओर से सैनिकों को ढूंढने के लिए सर्च ऑपरेशन चलाया गया। इसमें 15 सैनिकों के शव मिल गए थे लेकिन पांच सैनिकों का पता नहीं चल सका था। एक दिन पहले सियाचीन में भारतीय जवानों को चंद्रेशेखर के साथ-साथ एक और जवान का पार्थिव शरीर मिला। हाथ में बंधे ब्रेसलेट पर अंकित नंबर का सैन्य रिकॉर्ड से मिलान के बाद उनकी पहचान तय की गई। फिर परिजनों को सूचना दी गई।


उल्लेखनीय हो कि सियाचिन दुनिया के दुर्गम सैन्य स्थलों में से एक है। यह बहुत ऊंचाई पर स्थित है, जहां जीवित रहना एक सामान्य मनुष्य के बस की बात नहीं है। भारत के सैनिक आज भी वहां पर अपनी ड्यूटी निभाते हैं। 1984 में देश के सैनिकों ने इस जगह को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में लिया था। इस अभियान में कई सैनिकों ने अपनी शहादत दी थी। सेना की नौकरी करने वाले लोगों के सियाचीन का किस्सा जीवन भर सुनाने वाला अनुभव होता है। बावजूद हमारे जवान वहां अपनी ड्यूटी पर तैनात रहते हैं। ऐसे जवानों को पत्रिका परिवार की ओर से शत-शत नमन।

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