शाह ने सत्तारूढ़ टीआरएस द्वारा मुस्लिम आरक्षण को 12 फीसदी बढ़ाने के प्रस्ताव का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा, TRS ने 2014 के चुनाव में वादा किया था। अप्रैल 2017 में, तेलंगाना विधानसभा ने मुसलमानों के लिए 4% से 12% और अनुसूचित जनजातियों के लिए 6% से 10% तक आरक्षण बढ़ाने के लिए एक विधेयक पारित किया।जब इसे केंद्र के पास भेजा गया मंजूरी के लिए तो केंद्र ने धर्म आधारित आरक्षण पर आपत्ति जताते हुए इस कदम की निंदा की थी।’
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12 फीसदी आरक्षण का वादागौरतलब है कि वर्ष 2017 में केसीआर ने कहा था कि तेलंगाना सरकार मुस्लिम आरक्षण को 4 फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी करने का निर्णय लिया था। आरक्षण में इस वृद्धि के बाद राज्य में कुल निर्धारित आरक्षण 50 फीसदी हो जाता। लेकिन केंद्र ने इसके लिए मंजूरी नहीं दी। अमित शाह ने इस मुद्दे को उठाकर आरक्षण ही खत्म करने की बात कही है। लेकिन ऐसा क्यों?
क्या मुस्लिम आरक्षण बन रहा चुनावी मुद्दा?
तेलंगाना की जनसंख्या देखें तो यहाँ 84% हिन्दू, 12.4% मुस्लिम और 3.2% सिख, ईसाई और अन्य धर्म के लोग हैं। यहाँ मुस्लिम वोटों के जरिए सियासी दांव पेंच हर चुनाव में देखने को मिले है।
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AIMIM के फायरब्रैंड नेता असदुद्दीन ओवैसी भले ही मुस्लिम हितों की बातें करते हैं लेकिन उन्हें मुस्लिम वोट कुछ खास नहीं मिलते। राज्य की 119 विधानसभा क्षेत्रों में से 40-45 सीटों पर अल्पसंख्यकों का खासा प्रभाव है। ऐसे में यहाँ के राजनीतिक दलों के लिए मुस्लिम वोट काफी महत्वपूर्ण हो जाते हैं।वहीं, हिन्दू मतदाता बहुसंख्यक हैं और अमित शाह इसी तबके को अपने पक्ष में करने के लिए मुस्लिम आरक्षण को बड़ा मुद्दा बनाते हुए नजर आ रहे हैं।