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टूट रहा NDA का कुनबा, 4 साल में 8 पार्टियों ने छोड़ा साथ, कई बगावत को तैयार, जानें वजह

NDA Allies Tussle Before 2024 General Election: लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए का कुनबा बिखरता नजर आ रहा है। पिछले 4 सालों में आठ दलों ने भारतीय जनता पार्टी का साथ छोड़ा है। कई पार्टियां बगावत को तैयार है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर एनडीए के सभी दल बीजेपी से खुश हैं? आखिर क्या वजह है जो एनडीए का कुनबा बिखर रहा है?

नई दिल्लीJun 08, 2023 / 05:00 pm

Paritosh Shahi

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NDA Allies Tussle Before 2024 General Election: विपक्षी पार्टियां एक ओर 2024 में भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में वापस से रोकने के लिए एकजुट हो रही है। नीतीश कुमार इस विपक्षी एकता की मुहिम के मुखिया बने हुए हैं। नीतीश भाजपा विरोधी हर दल के बड़े नेता से मिलकर 2024 में साथ आने की अपील कर रहे हैं। इस मुहिम में भले ही उनके साथ विपक्ष की सभी पार्टियां नहीं आ रही हो, फिर भी कुछ पार्टियां ऐसी हैं जो इस मुहिम में नीतीश कुमार के साथ दिखाई पड़ रही हैं लेकिन दूसरी ओर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए जिसका सबसे बड़ा दल भारतीय जनता पार्टी है, उनका कुनबा एक के बाद एक करके बिखरता जा रहा है। पिछले 4 सालों में 8 पार्टियां भाजपा का साथ छोड़ चुकी हैं। दो और पार्टी धमकी पर उतारू है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या एनडीए में सारी पार्टियां बीजेपी से खुश है ? क्या NDA में सब कुछ ठीक चल रहा है और अगर सब कुछ ठीक नहीं है तो इसके पीछे की वजह क्या है?


सबसे पहले जानते हैं राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन है क्या?

NDA का मतलब ( National Democratic Alliance ) राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन है। 1996 में संयुक्त मोर्चा की वजह से जब बीजेपी सरकार बनाने से चूक गई तो दो साल बाद 1998 में एनडीए बनाने की पहल हुई। एनडीए बनाने में जेडीयू के कद्दावर नेता रहे जॉर्ज फर्नांडिज और बीजेपी के लालकृष्ण आडवाणी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

एनडीए के साथी दल अब तक साथ में मिलकर 6 लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। एनडीए के पहले चेयरपर्सन पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी थे। 2004 से 2012 तक आडवाणी इसके चेयरमैन रहे। एनडीए में दूसरा अहम पद संयोजक का होता है।

जार्ज फर्नांडिज एनडीए के पहले संयोजक बने। आडवाणी के समय शरद यादव एनडीए के संयोजक थे। जिनकी कुछ महीने पहले हीं मृत्यु हुई है। फिलहाल अमित शाह एनडीए के चेयरमैन हैं, लेकिन संयोजक के पद पर कोई नेता नहीं बैठा है।

पिछले 4 सालों में इन दलों ने छोड़ा बीजेपी का साथ

पिछले 4 सालों में भाजपा के कई पुराने साथियों ने अलग राह चुना है। जिसमें सबसे पहले साल 2019 में सबसे पुराने साथी शिवसेना ने भाजपा का साथ छोड़ कांग्रेस और शरद पवार का दामन थाम लिया। उसके बाद 2020 में शिरोमणि अकाली दल, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने भाजपा को छोड़ अलग राह अपनाया। फिर 2021 में डीएमके ने भाजपा से अपना दामन छुड़ाया। उसके बाद 2022 में गोवा फॉरवर्ड पार्टी, जेडीयू, जेआरएस ने भाजपा का साथ छोड़ा। इस तरह से देखे तो पिछले आठ साल एनडीए के घटक दलों के लिए अच्छे नहीं रहे हैं।

कुनबा बिखरने पर कितनी सीटों पर होगा असर

एक ओर नीतीश कुमार, कांग्रेस, ममता बनर्जी सहित कई क्षेत्रीय पाटिया विपक्षी गठबंधन की कवायद में जुटी है तो दूसरी ओर एनडीए का कुनबा बिखरता जा रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि इसका लोकसभा चुनाव में कितनी सीटों पर असर दिखेगा तो आपको बता दें कि बिहार की 40 सीटों पर नीतीश कुमार की पार्टी और जीतन राम मांझी की पार्टी का साथ न मिलने से असर देखने को मिलेगा।

महाराष्ट्र की 48 सीटों पर, गोवा की 2 सीटों पर, पंजाब की 13, राजस्थान की 3, तमिलनाडु की 10 और पश्चिम बंगाल की 3 सीटों पर भाजपा को गठबंधन टूटने के कारण परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। कुल मिलाकर देखे तो टोटल 150 सीटों पर इसका असर देखने को मिल सकता है।

क्यों बिखर रहा है एनडीए का कुनबा? क्या कम्युनिकेशन गैप बन रहा सबसे बड़ा कारण

मोदी सरकार बनने के बाद से ही एनडीए में कॉर्डिनेशन कमेटी बनाने की मांग उठ रही है, लेकिन 9 साल बीत जाने के बाद भी यह सफल नहीं हो पाया है। गठबंधन का सबसे महत्वपूर्ण पद संयोजक का अब भी खाली है। इसी लिए कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर बिना कोई बात-विचार किए निर्णय हो जाता है।

केसी त्यागी जनता दल यूनाइटेड के वरिष्ठ नेता और पार्टी में हो रहे निर्णयों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं साथ हीं एनडीए गठन में वो बड़ी भूमिका निभा चुके हैं। एनडीए गठबंधन में रहते वक्त त्यागी कॉर्डिनेशन कमेटी बनाने की मांग कई बार कर चुके हैं। एनडीए में हो रही टूट के पीछे त्यागी इसे सबसे बड़ी वजह मानते हैं।

अटल बिहारी वाजपेयी के वक्त जॉर्ज फर्नांडिज सभी मुद्दों पर नेताओं से राय लेते थे। किसी भी विवाद को मीटिंग बुलाकर तुरंत खत्म किया जाता था, लेकिन हाल के वर्षों में एनडीए के भीतर ऐसा कोई दृश्य नहीं देखा गया है। बीजेपी का ताकतवर होना इसकी मुख्य वजह है।


हरियाणा में क्या विवाद है?

बीजेपी का हरियाणा में भी अपने साथी से झगड़ा शुरू हो गया है । 2019 के विधानसभा चुनाव में हरियाणा की 90 सीटों में बीजेपी को 40, कांग्रेस को 31, जेजेपी को 10, इनेलो-एचएलपी को 1-1 और निर्दलीय को 7 सीटों पर जीत मिली। बीजेपी 46 के बहुमत के आंकड़े से काफी पीछे रह गई।

ऐसे में बीजेपी ने जेजेपी से गठबंधन किया। सरकार में जेजेपी को भी हिस्सेदारी दी गई, लेकिन पिछले कुछ महीनों से दोनों पार्टियों के बीच कुछ मुद्दों और सीटों को लेकर विवाद शुरू हो गया है। 2 महीने पहले जेजेपी की पेंशन वाली मांग को हरियाणा के मुख्यमंत्री ने लागू करने से मना कर दिया था।

हाल ही में बीजेपी के हरियाणा राज्य प्रभारी बिप्लव देव ने जिंद की उचाना कलां सीट पर 2024 में बीजेपी कैंडिडेट उतारने की बात कही थी। उचाना से 2019 में डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने बीजेपी की प्रेमलता सिंह को 47 हजार वोटों से हराया था।

ऐसे में जेजेपी का इस सीट पर दावा ज्यादा मजबूत है, तो वो इस सीट को किसी भी हाल ,में छोड़ना नहीं चाहती। इसी कारण जेजेपी ने साफ कर दिया है कि इस सीट पर कोई समझौता नहीं होगा और बीजेपी ज्यादा बयानबाजी करेगी तो गठबंधन के भविष्य पर फैसला किया जा सकता है।

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