दरअसल, मंगलवार को जब लोकसभा में सरकार से सवाल पूछा गया कि क्या सरकार ने 2021-22 में जाति आधारित जनगणना कराने पर विचार किया है और यदि हां, तो उसका ब्यौरा क्या है और यदि नहीं, तो इसके क्या कारण हैं बताएं। इसके जवाब में केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा कि ‘जाति और जनजाति जिन्हें विशेष रूप से अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के रूप में अधिसूचित किया गया है, संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950 और संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश 1950 के अनुसार समय-समय पर संशोधित किया गया है।’
उन्होंने आगे कहा, “आजादी के बाद से भारत सरकार ने जनगणना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा अन्य जातियों की आबादी की गणना नहीं की है।”
इसके साथ ही उन्होंने जानकारी दी कि 2021 की जनगणना करने की सरकार की मंशा 28 मार्च 2019 को भारत के राजपत्र में अधिसूचित की गई थी। हालांकि, कोरोना के कारण जनगणना की गतिविधियों को टालना पड़ा है। दरअसल, सरकार ने वर्ष 2018 में कहा था कि वर्ष 2021 की जनगणना में वो पिछड़ी जातियों की गणना कराएगी।
इस सूचना के बाद से अवश्य ही आरजेडी, जेडीयू और सपा जैसी पार्टियों को निराश हाथ लगी होगी जो काफी लंबे समय से इसकी मांग कर रही हैं। इन सभी दलों का तर्क है कि इस गणना से वास्तव में जरूरतमंदों को सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक मदद मिलेगी।
बिहार विधानमण्डल में और बाद में बिहार विधानसभा में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पहले पारित हो चुका है। महाराष्ट्र हो या ऑडिश या यूपी बिहार यहाँ के राजनीतिक दलों की मांग है कि जल्द से जल्द जातिगत जनगणना कराई जाए। इसके लिए केंद्र सरकार पर दबाव भी लगातार बनाया जा रहा है। यदि सरकार मान जाती तो इन क्षेत्रीय दलों को अपना समीकरण और चुनावी रणनीति बनाने में मदद मिलती। खासकर इन्हें ओबीसी की सटीक आबादी की जानकारी मिलती। बता दें कि उत्तर प्रदेश में ओबीसी जाति का प्रभाव 40-45 फीसदी है। इसी से समझना आसान है कि यदि ये गणना हुई तो सियासी दल अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव करेंगे।
बता दें कि देश में हर दस वर्ष में जनगणना होती है। वर्ष 2011 में आखिरी जनगणना हुई थी और अब 2021 की जनगणना होनी है जो कोरोना के कारण विलंब हो रही है। देश में जनगणना की शुरुआत 1881 में हुई थी, परंतु तब फोकस में शिक्षा, रोजगार और मातृभाषा हुआ करता था। वहीं, जातिगत आधारित जनगणना 1931 में हुई थी। ये वो समय था जब पाकिस्तान और बांग्लादेश भी भारत का हिस्सा हुआ करता था।