अध्ययन में यह बात सामने आई है कि जो ग्लेशियर दक्षिण की ओर हैं, उन्होंने उत्तर की ओर मुख करने वाले ग्लेशियरों की तुलना में कहीं ज्यादा गिरावट का सामना किया है। इसी तरह जो ग्लेशियर अधिक ऊंचाई पर या समुद्र के स्तर से औसतन 3,800-4,000 मीटर ऊंचाई पर है, उन्होंने कम ऊंचाई वाले ग्लेशियरों की तुलना में गिरावट की कहीं ज्यादा दर देखी है। रिसर्च में यह भी सामने आया है कि हल्की ढलान वाले ग्लेशियरों की तुलना में तीव्र ढलान वाले ग्लेशियरों में गिरावट की दर उतनी नहीं थी।
हिमालय क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर आसपास के क्षेत्र में बसे समुदायों के लिए महत्वपूर्ण जल स्रोत हैं। वे नदी के प्रवाह, कृषि और पनबिजली उत्पादन को बनाए रखने में मददगार होते हैं। साथ ही स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र, वन्य जीवन और आवासों को भी संरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालांकि हिमनदों के नुकसान का प्रभाव धीरे-धीरे होगा, लेकिन जलवायु में आते बदलावों की वजह से यह ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, उससे अचानक हिमनद झीलों के फटने का खतरा बढ़ रहा है। इससे नीचे की ओर इसके रास्ते में आने वाली मानव बस्तियों और पारिस्थितिक तंत्र के लिए खतरा पैदा हो सकता है।