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कश्मीर में चार दशक के दौरान 122 ग्लेशियरों में तेजी से आ रही गिरावट, खो दिया 9.83 वर्ग किमी हिस्सा

जम्मू-कश्मीर में पीर पंजाल रेंज के 122 ग्लेशियर चार दशक में तेजी से पिघले हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार ग्लेशियरों ने अपना 9.83 वर्ग किलोमीटर हिस्सा खो दिया है।

नई दिल्लीApr 20, 2024 / 11:23 am

Shaitan Prajapat

जम्मू-कश्मीर में पीर पंजाल रेंज के 122 ग्लेशियर चार दशक में तेजी से पिघले हैं। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआइटी) श्रीनगर के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि यह ग्लेशियर क्षेत्र जो 1980 में करीब 25.7 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला था, वो 2020 में घटकर महज 15.9 वर्ग किलोमीटर रह गया है। इस दौरान इन ग्लेशियरों ने अपना 9.83 वर्ग किलोमीटर हिस्सा खो दिया है। इसी तरह 55 ग्लेशियरों के एक विशेष वाटर-शेड ‘विशव’ ने इस दौरान अपने करीब छह वर्ग किलोमीटर से ज्यादा हिस्से को खो दिया है। अध्ययन में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि 0.5 वर्ग किलोमीटर या उससे कम माप वाले छोटे ग्लेशियर, बड़े ग्लेशियरों की तुलना में तेजी से पीछे हटे हैं। यह अध्ययन एनआइटी के डिपार्टमेंट ऑफ सिविल इंजीनियरिंग से जुड़े शोधकर्ता मोहम्मद अशरफ गनाई और सैयद कैसर बुखारी की ओर से किया गया। यह इंटरनेशनल जर्नल ऑफ हाइड्रोलॉजी साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित हुआ हैं।
ढलान वाले ग्लेशियरों में गिरावट की दर कम
अध्ययन में यह बात सामने आई है कि जो ग्लेशियर दक्षिण की ओर हैं, उन्होंने उत्तर की ओर मुख करने वाले ग्लेशियरों की तुलना में कहीं ज्यादा गिरावट का सामना किया है। इसी तरह जो ग्लेशियर अधिक ऊंचाई पर या समुद्र के स्तर से औसतन 3,800-4,000 मीटर ऊंचाई पर है, उन्होंने कम ऊंचाई वाले ग्लेशियरों की तुलना में गिरावट की कहीं ज्यादा दर देखी है। रिसर्च में यह भी सामने आया है कि हल्की ढलान वाले ग्लेशियरों की तुलना में तीव्र ढलान वाले ग्लेशियरों में गिरावट की दर उतनी नहीं थी।
ग्लेशियर लोगों के लिए महत्वपूर्ण जल स्रोत
हिमालय क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर आसपास के क्षेत्र में बसे समुदायों के लिए महत्वपूर्ण जल स्रोत हैं। वे नदी के प्रवाह, कृषि और पनबिजली उत्पादन को बनाए रखने में मददगार होते हैं। साथ ही स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र, वन्य जीवन और आवासों को भी संरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालांकि हिमनदों के नुकसान का प्रभाव धीरे-धीरे होगा, लेकिन जलवायु में आते बदलावों की वजह से यह ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, उससे अचानक हिमनद झीलों के फटने का खतरा बढ़ रहा है। इससे नीचे की ओर इसके रास्ते में आने वाली मानव बस्तियों और पारिस्थितिक तंत्र के लिए खतरा पैदा हो सकता है।

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