टाइटैनिक जहां डूबा वहां जाना बेहद खतरनाक
अटलांटिक महासागर में जिस जगह पर टाइटैनिक जहाज डूबा था, वहां के आसपास का जल क्षेत्र बेहद खतरनाक माना जाता है। इसकी पहली वजह तो ये है कि वहां की दुनिया अंधेरी है। दरअसल टाइटैनिक का मलबा अटलांटिक महासागर में चार किलोमीटर नीचे मौजूद है। इस इलाके को ‘मिडनाइट ज़ोन’ कहते हैं। यहां पनडुब्बी की रोशनी आगे कुछ ही मीटर तक जाती है। ऐसे में ध्यान भटकने का डर बना रहता है।
काफी कीचड़, भीषण ठंडा पानी, हिलती-डूलती रहती है
टाइटैनिक एक्सपर्ट टिम मैटलिन के हवाले से बीबीसी को कहा कि “यहां धूप अंधेरा है, और भीषण ठंडा पानी है। समंदर की सतह पर कीचड़ है और ये हिलती-डुलती रहती है। उन्होंने कहा, “आप उस समय कहां है, ये पता लगाने के लिए आपके पास सिर्फ सोनर नामक चीज़ होती है। यहां तक कि रडार भी काम नहीं करता।”
एक्सपर्ट बोले- टाइटैनिक तक जाने वाली पनडुब्बी की दीवारें मोटी होना जरूरी
एक्सपर्ट का कहना है कि टाइटैनिक तक जाने वाली पनडुब्बी की दीवारें बहुत मोटी होनी चाहिए। अटलांटिक महासागर की गहराइयों में लापता हुई पनडुब्बी टाइटन का पता लगाने के लिए अमरीका से एक खोजी सबमरीन को घटनास्थल पर भेजा जा रहा है। रिमोट से चलाई जा सकने वाली इस सबमरीन को टाइटैनिक तक पहुंचने में 48 घंटों का वक़्त लगेगा।
पैसे वाले लोग रोमांच का अनुभव करने के लिए जाते हैं
टाइटैनिक तक पहुंचना खतरनाक इसलिए भी है कि क्योकिं वहां के पानी का बहाव काफी तेज है। साथ ही 100 साल से पानी में पड़ा टाइटैनिक के मलबे का टूटना, गिरना जारी है। अगर कोई इसके बहुत करीब जाता है तो टकरा सकता है, उलझ सकता है।
पैसे वाले लोग रोमांच का अनुभव करने के लिए यहां तक जाते हैं। यहां तक ले जाने वाली टूर कंपनी पनडूब्बी, जोखिम भरी यात्रा और अन्य खर्चों को जोड़ कर प्रति व्यक्ति 2.28 करोड़ रुपए का चार्ज करती है। अब इस लापता पनडूब्बी में सवार लोगों के बचने की उम्मीद धुंधली होती जा रही है।
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