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त्रिपुरा विवाद: आखिर TMC के लिए त्रिपुरा क्यों महत्वपूर्ण है? क्या है उसकी जीत की संभावना?

वर्ष 2018 में त्रिपुरा में लेफ्ट को उखाड़ फेंक भाजपा सत्ता में आई थी। भाजपा से पहले ये टीएमसी थी जो पूर्वोत्तर राज्य में अपनी पकड़ मजबूत कर रही थी और सत्ता से लेफ्ट को हटाना चाहती थी। वर्ष 2016 में त्रिपुरा में कांग्रेस के कुल 10 में से 6 विधायक पार्टी छोड़ तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे। इसके बाद राज्य में मुख्य विपक्षी दल का तमगा कांग्रेस से छिनकर तृणमूल कांग्रेस के पास चला गया।

नई दिल्लीNov 22, 2021 / 05:56 pm

Mahima Pandey

त्रिपुरा से लगातार भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच तनाव और हिंसा की खबरें मीडिया में हेडलाइन बनी हुई हैं। जिस तरह से तृणमूल कांग्रेस भारत के पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में एक्टिव है उसने प्रदेश में भाजपा की टेंशन अवश्य बढ़ा दी है। परंतु सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर त्रिपुरा ममता बनर्जी के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों बन गया है? और भविष्य में उनकी पार्टी यहां कोई बड़ा कमाल दिखा पायेगी?
पहले से ही त्रिपुरा पर है टीएमसी की नजर

वर्ष 2018 में त्रिपुरा में लेफ्ट को उखाड़ फेंक भाजपा सत्ता में आई थी। भाजपा से पहले ये टीएमसी थी जो पूर्वोत्तर राज्य में अपनी पकड़ मजबूत कर रही थी और सत्ता से लेफ्ट को हटाना चाहती थी। वर्ष 2016 में त्रिपुरा में कांग्रेस के कुल 10 में से 6 विधायक पार्टी छोड़ तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे। इसके बाद राज्य में मुख्य विपक्षी दल का तमगा कांग्रेस से छिनकर तृणमूल कांग्रेस के पास चला गया।
हालांकि, टीएमसी को पीछे छोड़ भाजपा कहीं आगे निकल गई और 25 साल से सत्ता पर काबिज लेफ्ट को उखाड़ फेंका। जो 6 विधायक टीएमसी में शामिल हुए थे उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया। इससे पूर्वोत्तर राज्यों में अपनी स्थिति मजबूत करने पर काम कर रही टीएमसी को बड़ा झटका लगा था।
जनसंख्या

पूर्वोत्तर राज्यों में त्रिपुरा बंगाली बहुल राज्य है। त्रिपुरा में लगभग 70 फीसदी लोग बंगाली बोलते हैं जबकि त्रिपुरी भाषा (कोक बोरोक) केवल 30 फीसदी लोग ही बोलते हैं। इसके अलावा हिन्दी, अस्मिय और इंग्लिश भाषी लोग भी यहाँ हैं। यही नहीं यहाँ बंगालियों का प्रभाव प्रशासन में भी काफी मजबूत है। 2011 की जनगणना के अनुसार त्रिपुरा में हिंदुओं की जनसंख्या 83.40% है जिसमें से 66 फीसदी गैर आदिवासी बंगाली हिन्दू हैं। वहीं, मुस्लिम 8 फीसदी और ईसाई 4.3 फीसदी हैं। पश्चिम बंगाल के बाद राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए त्रिपुरा टीएमसी के लिए एक आसान टारगेट था परंतु यहाँ भी भाजपा ने बाजी मार ली। हालांकि, ममता बनर्जी ने फिर भी हार नहीं मानी।
अभिषेक बनर्जी ने संभाली त्रिपुरा

पश्चिम बंगाल में 2021 के विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज करने के बाद तृणमूल कांग्रेस के लिए एक ओर बड़ा मुद्दा बन गया, भाजपा को कैसे केंद्र से उखाड़ फेंकने का। इसीलिए एक बार फिर से ममता बनर्जी ने अपनी राष्ट्रीय राजनीति में पकड़ को मजबूत करने के लिए त्रिपुरा की ओर रुख किया। ममता ने अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को प्रशांत किशोर की कंपनी आई-पैक की एक टीम के साथ अगस्त में त्रिपुरा भेजा। राजनीतिक सर्वेक्षण के नाम पर त्रिपुरा पहुंचे अभिषेक बनर्जी ने पार्टी के लिए जमीन तैयार करने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया। त्रिपुरा की जमीन पर पहुंचते ही अभिषेक बनर्जी ने भाजपा पर हमले करवाने का आरोप लगाया। यहाँ भी टीएमसी और भाजपा में टकराव की स्थिति देखने को मिली जिसने राष्ट्रीय मीडिया में जगह बनाई। पहले से ही भाजपा पर लेफ्ट के नेताओं पर हमले करने के आरोप लग रहे थे। ऐसे में टीएमसी ने भाजपा पर अपने कार्यकताओं पर भी हमला करने के आरोप लगाने शुरू कर दिए। ये मुद्दा देश की खबरों में चर्चा का केंद्र बन गया और ममता की पार्टी के लिए सहानुभूति का दौर शुरू हो गया। 2021 के बंगाल विधानसभा चुनावों के दौरान भाजपा के खिलाफ खेला होबे टीएमसी का चुनावी नारा था।
पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में पार्टी की जीत के बाद टीएमसी ने इस जुमले को भाजपा के खिलाफ सियासी जंग में बदल दिया। ये जंग अभी भी जारी है। एक बार फिर से यहाँ टीएमसी ने भाजपा पर हिंसा करने का आरोप लगाया है। वर्तमान में टीएमसी की यूथ प्रेसिडेंट शायनी घोष को अगरतला पुलिस ने एक जनसभा में कथित तौर पर भाजपा कार्यकर्ताओं को कुचलने की कोशिश करने के आरोप गिरफ्तार कि‍या है। इस मामले पर अभिषेक बनर्जी ने भाजपा को फिर से घेरा है और अगरतला के लिए निकल गए।
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मुकुल रॉय फैक्टर

जो मुकुल रॉय टीएमसी का साथ छोड़ पश्चिम बंगाल में भाजपा के साथ चले गए थे, वो चुनाव खत्म होते ही वापस पार्टी के साथ आ गए। अटकलें लगाई जाने लगीं कि ममता मुकुल रॉय को त्रिपुरा में भाजपा के खिलाफ इस्तेमाल कर सकती हैं। त्रिपुरा में भाजपा में काफी उथल-पुथल है और पार्टी के कई विधायक मुख्यमंत्री विपलब देब के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं। भाजपा में चल रहे तनाव का फायदा उठाने के लिए ममता बनर्जी ने मुकुल रॉय को भाजपा में सेंध लगाने की जिम्मेदारी दी। ये तक दावे किये जाने लगे कि भाजपा में असन्तुष्ट चल रहे नेता मुकुल रॉय के संपर्क में थे। इसके बाद तो असन्तुष्ट नेता भाजपा छोड़ टीएमसी का रुख करने लगे। मुकुल रॉय के बाद भाजपा विधायक सौमेन रॉय, विश्वजीत दास, तन्मय घोष, पूर्व केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो व एक अन्य विधायक टीएमसी में शामिल हो गए थे। इसके बाद त्रिपुरा की रैली में राजिब बनर्जी भी वापस टीएमसी में शामिल हो गए। पूर्व भाजपा नेता आशीष दास ने तो बड़ी घोषणा के साथ टीएमसी का दामन थामा था। इससे त्रिपुरा में भाजपा के संगठन मजबूत करने के प्रयासों को बड़ा झटका लगा है।
त्रिपुरा के बाद असम निशाने पर

हालांकि, टीएमसी के मिशन त्रिपुरा को तब और बढ़ावा मिला जब असम की वरिष्ठ कांग्रेस नेता सुष्मिता देव 16 अगस्त को पार्टी में शामिल हुईं। सुष्मिता देव के पार्टी में शामिल होने से ममता की पार्टी को त्रिपुरा के बाद असम को लेकर अपनी रणनीति बनाने में मदद मिलेगी। दरअसल, सुष्मिता देव असम के बराक वैली इलाके से हैं और यहां सैकड़ों कांग्रेस कार्यकर्ता आधिकारिक तौर पर टीएमसी में शामिल हो चुके हैं। असम में बंगाली भाषा बोलने वालों की संख्या 28.9 फ़ीसदी है। यहां त्रिपुरा में बंगाली हिंदुओं को साधने के बाद ममता बनर्जी का उद्देश्य असम में अपनी पैठ बनाने की होगी। असम मे अब तक बंगाली हिन्दू भाजपा को वोट करते आए हैं परंतु टीएमसी यहाँ सत्ता विरोधी लहर और बंगाली अस्मिता का दांव खेल बढ़त बनाना चाहती है।
टीएमसी के लिए जीत की राह आसान नहीं

बता दें कि वर्ष 2018 में भाजपा ने 60 में से 36 सीटें जीतकर त्रिपुरा में वामपंथी किले को गिराकर पहली बार सत्ता हासिल की थी. ये वही भाजपा है जिसे वर्ष 2013 में केवल 1.5% ही वोट मिले थे जबकि अधिकतर उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. तब ममता बनर्जी की पार्टी भी चुनावी मैदान में थी। तब टीएमसी ने 24 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किये थे जिसमें से एक को भी जीत नसीब नहीं हुई थी। इस पार्टी को केवल 0.3 फीसदी वोट ही मिले थे।
हालांकि, पश्चिम बंगाल में भाजपा के खिलाफ बेहतरीन प्रदर्शन के बाद टीएमसी का आत्मविश्वास बढ़ा है और ममता बनर्जी राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़े नेता के तौर पर खुद को स्थापित करना चाहती हैं। इसके लिए टीएमसी पूर्वोत्तर राज्यों में पार्टी का विस्तार कर रही हैं। हालांकि, इतनी रणनीतियों के बावजूद ममता बनर्जी भाजपा को कोई खास नुकसान नहीं पहुंचा पाई हैं। हाल ही में त्रिपुरा में हुए निकाय चुनावों में भाजपा को शानदार जीत मिली थी। भाजपा ने 334 सीटों में से 112 पर निर्विरोध जीत हासिल कर ली। बाकी बची हुई 222 सीटों पर 22 नवंबर को चुनाव होने हैं। यदि इसमें भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहा तो ये संकेत हैं कि TMC के लिए राज्य में जीत की राह आसान नहीं है।

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