नीमच-मंदसौर संसदीय सीट में कुल 7 विधानसभा सीटें हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में 7 में से 6 सीटों पर भाजपा का कब्जा था। पिछले साल जून 2017 में मंदसौर जिले के पिपलियामंडी में किसान आंदोलन हुआ था। इस दौरान हुए गोलीकांड में ६ किसानों की मौत हो गई थी। इसे कांग्रेस ने राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया था। प्रदेश और देश के मीडिया ने भी इसे प्राथमिकता से कवरेज किया था। यहां तक के कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी भी यहां पहुंचे थे। यह बात अलग है कि पुलिस प्रशासन की सख्ती के चलते तब वे किसानों से मिल नहीं पाए थे। इसके बाद हार्दिक पटेल सहित कई राष्ट्रीय नेता नीमच-मंदसौर जिले में आए और किसानों के साथ दु:ख में सहभागी बने थे। इस मुद्दे को कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में प्रदेश स्तर पर भुनाने का पूरा प्रयास किया था। हर जनसभा में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने किसानों की हत्या के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया था। पिपलिया मंडी में राहुल गांधी ने जनसभा को संबोधित कर किसानों को पार्टी के पक्ष में करने का प्रयास भी किया था। जिस प्रकार के नतीजे सामने आए हैं इससे तो यही कहा जा सकता है कि विधानसभा परिणामों पर किसान आंदोलन का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। संसदीय क्षेत्र के सभी 7 सीटों पर वो ही परिणाम सामने आए हैं जो पिछले विधानसभा चुनाव में थे। सुवासरा सीट पर कांग्रेस के ही हरदीपसिंह डंग जीते थे। इस बार भी सुवासरा सीट को छोड़कर संसदीय क्षेत्र की शेष 6 विधानसभा सीटों पर फिर से कमल खिला है। अब यह कहना कि कांग्रेस की ओर से इस बार भी टिकट वितरण सही नहीं हुआ है यह राजनीतिक मुद्दा है। सच्चाई को स्वीकार करना ही पड़ेगा कि किसान आंदोलन से भाजपा को जो नुकसान पहुंचा था इसे मुख्यमंत्री रहे शिवराजसिंह चौहान ने बड़ी चतुराई से कंट्रोल कर लिया था। संसदीय क्षेत्र में जिस प्रकार के नतीजे भाजपा के पक्ष में आए हैं इसे दृष्टिगत रखते हुए अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में किसान आंदोलन मुख्य मुद्दा होगा इसको लेकर संशय रहेगा। किसानों के हित में कांग्रेस मुद्दे को उठाएगी अवश्य, लेकिन यह मुख्य मुद्दा रहेगा यह नहीं कहा जा सकता।