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video बेटे की निशक्तता के बाद अब अन्य निशक्त बच्चों की मां का दर्द कम करने का काम करती है जीनत

– गरीब बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा और थैरेपी देकर उन्हें सशक्त बनाने का प्रयास – सब दीदी कहकर बुलाते है और उनकी सेवा करते है प्रशंसा

नीमचMar 18, 2019 / 06:08 pm

Mahendra Upadhyay

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video बेटे की निशक्तता के बाद अब अन्य निशक्त बच्चों की मां का दर्द कम करने का काम करती है जीनत

नीमच। शहर के कोर्ट मोहल्ले की रहवासी जीनत जहां के छोटे बेटे के निशक्त होने पर उन्होंने उनकों इस प्रकार झकझोर कर रख दिया कि उन्होंने अपना जीवन का अधिकांश समय निशक्त बच्चों के लिए समर्पित कर दिया। आज उनके पास करीब २५ निशक्त बच्चे पढऩे और थैरेपी कराने आते है। जिससे वह एक बार अपने पैरों पर खड़े हो सके। इस पुण्य कार्य को देखकर जहां मोहल्ले वासी उनकी प्रशंसा करते, वहीं निशक्त बच्चों के माता-पिता उनके द्वारा बच्चों की देखरेख करने के तरीके पर प्रशंसा करते थकते नहीं है।

नीमच सिटी के कोर्ट मोहल्ला निवासी जीनत जहां पति मोहम्मद एहसान ने बताया कि उनके दो बेटे में मोहम्मद अयान उम्र १२ वर्ष और मोहम्मद ईश्हाक उम्र १० वर्ष है। मोहम्मद ईश्हाक जन्म से ही निशक्त है। वह उठ और बैठ नहीं पाता है। जिसका काफी इलाज कराया। वहीं निशक्तों के लिए मिलने वाली सरकारी योजनाओं के लिए भी उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा। वाराणासी के गुरुजी अशोक मौर्य की थैरेपी विधि से बच्चा बैठने लायक हुआ। उससे पहले पांच साल तक उम्र के बाद भी वह न उठ और बैठ सकता है। अपने बेटे की निशक्तता का दर्द उन्हें पता है और अन्य निशक्त बच्चों के परिजनों के साथ वह निशक्त बच्चों की सेवा कर अपना दर्द उनकी मां के साथ बांटती है। उन बच्चों के विकलांगता सर्टिफिकेट बनाने से लेकर सरकारी योजना उपलब्ध कराने का काम करती है। वहीं इन बच्चों को पढ़ाती और उसके बाद उनकी फिजियोथैरेपी करती है। जिससे वह अपने पैरो पर खड़े हो सके। आज उनके पास शहर ही नहीं गांव से भी परिजन विश्वास के साथ निशक्त बच्चों को थैरेपी को शिक्षा के लिए छोड़कर जाते है। इस कार्य को करते हुए अब उन्होंने इस कार्य हेतु एक संस्था बेटे के नाम पर ईशु नवजीवन निशक्त संस्था खोल दिया है। खासकर अधिक निशक्तता में योगेश, धीरज, सपना, गौरव, हार्दिका, प्रयान, अधियज्ञय, फरीन और राहेमीन है। तनिष्क और योगेश तो चलने लायक भी नहीं है। जिनकी रोजाना थैरेपी होती है।
मां की तरह करती है देखभाल
सफद्दीन बाबा दरगाह के पास निवासी चंद्रकला धाकड़ ने बतयाा कि उनके बेटे प्रयान को बचपन में ही शुगर हो गई और निशक्तता ने घेर लिया। यहां पर बच्चा पिछले तीन साल से आ रहा है। उसे काफी फर्क है। वह बैठने लग गया है। मां से भी अच्छी तरह बच्चों की देखभाल करती है। वहीं रावरूंडी गांव निवासी बंाीनाथ ने बताया कुदरत की ऐसी मार है कि दो बच्चे योगेश और धीरज है। दोनों निशक्कता का शिकार है। इन बच्चों की बड़े प्यार से देखभाल करती है। इन बच्चों के देखभाल के लिए प्यार और समर्पण की भावना का होना बहुत आवश्यक है, जो कि दीदी में देखने को मिलता है।

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