यहां पढ़ें, क्यों मोहर्रम पर जगह जगह सजती है छबील
सिंगोली में ताजिए निकालकर मनाया यौमे आशूरा
यहां पढ़ें, क्यों मोहर्रम पर जगह जगह सजती है छबील
नीमच/सिंगोली. सदियों से चली आ रही ताजिये निकालकर हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करने की परंपरा के तहत शुक्रवार को मुस्लिम समुदाय ने नगर के परंपरागत मार्गो से ताजियों का जुलूस निकालकर या हुसैन या हुसैन नारों की बुलंद आवाज के साथ योमे आशूरा मनाया।
इससे पूर्व गुरुवार की रात में पिंजार पट्टी, ब्रहमपुरी, चौधरी चौक, अहिंसा पथ और बापू बाजार होते हुए तथा शुक्रवार को भी इसी मार्ग से परंपरानुसार जुलुस के साथ ताजिये निकले गए। इस दौरान जुलूस में शेरे अली अखाड़े के करतब बाजों ने अखाड़ा प्रदर्शन किया तथा जुलूस रात 11 बजे करीब पुराने थाने के पास प्रतिकात्मक कर्बला पहुंचा जहां ब्राह्मणी नदी में ताजियों को ठंडा किया गया।
मुहर्रम के मौके पर छबील (प्याऊ) लगा कर लोगों को शरबत और ठंडा पानी पिलाया गया। मुहर्रम के साथ ही गणेशोत्सव उत्सव तथा अन्य त्योहारों को ध्यान में रखते हुए प्रशासनिक प्रबंध भी पुख्ता थे। प्रशासनिक अधिकारियों में थाना प्रभारी समरथ सीनम अपने दल बल के साथ पूरी रात और दिन भर ताजियों के जुलुस के साथ मुस्तैद देखे गए। इसी तरह नगर प्रशासन तथा विद्युत कंपनी के कर्मचारी भी मौजूद रहे । ताजियों के जुलुस के दौरान थाना प्रभारी द्वारा किए गए ठंडे पानी के प्रबन्ध की मुस्लिम समुदाय ने सराहना की। योमे आशूरा के मौके पर अंजुमन कमेटी की ओर से सदर मोहम्मद जमील मेव ने सहयोग के लिए आवाम व प्रशासनिक अमले का शुक्रिया अदा किया।
छबील लगाकर पानी और शरबत पिलाने की परंपरा क्यों पड़ी
इस माह में छबील प्याऊ लगाकर ठंडा पानी और शरबत पिलाने की परंपरा भी है बयां है कि अल्लाह ताला के पसंदीदा मजहब दीन ए इस्लाम की तब्लीग व खिदमत और इसकी हिफाजत वह बका के लिए बेशुमार मुसलमान शहीद हुए। मगर उन तमाम शहीदों में हजरत इमाम हुसैन (रज़ी) की शहादत बेमिसाल है । आप जैसी तकलीफ और मुसीबत किसी ने नहीं उठाई मैदान ए कर्बला में आप 3 दिन के भूखे प्यासे शहीद किए गए। इस हाल में आपके साथ सभी अजीज रिश्तेदार 3 दिन से भूखे प्यासे थे और नन्हे बच्चे भी प्यास के मारे तड़प रहे थे । ऐसे मौका ए हाल में यजीद ने इमाम हुसैन के कुनबे पर दरिया ए फरात से एक बूंद पानी पीने पर भी पाबंदी लगा दी फिर भी हुसैन नहीं झुके और राहे हक में सब कुछ कुर्बान कर दिया। मैदान ए कर्बला में हजरत इमाम हुसैन के इस अजीम इम्तिहान को याद रखने और मुसलमान को अपने सफरे हयात में मजबूर इंसान की भूख और प्यास की शिद्दत को समझाने के लिए छबील लगाने की रिवायत है। साफ है अगर कोई मुसलमान किसी इंसान की भूख और प्यास की शिद्दत को नजरअंदाज करता है तो यह यजीद की निशानी है ।
मोहर्रम या आशुरे का खिचड़ा (दलीम) क्या है
मुहर्रम के मौके पर आशूरा का खिचड़ा पकाना कोई फजऱ् या सुन्नत नहीं है । बल्कि एक रिवायत है कि खास आशूरा के दिन खिचड़ा पकाना हजरत नूह अलैहिस्लाम की सुन्नत है। रिवायत है कि जब तूफान से निजात पा कर हजरत नूह अलैहिस्सलाम की कश्ती जूदी पहाड़ी के साथ ठहरी तो वह आशुरे का दिन था । पहाड़ी पर मौजूद गरीब और भूखे पर बाशिंदों के लिए उन्होंने अपनी कश्ती में रखें तमाम सात तरह के अनाज जिनमें बड़ी, मटर, गेहूं, जो, मसूर, चना, चावल और प्याज को बाहर निकाला और एक बड़े बर्तन में खिचड़ा पका कर उनको खिलाया । मिस्र में आशूरा के दिन दलीम पकाया जाता है । बस इसकी असल दलील यही है।
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