एक महान समाज सुधारक भी थे बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 में रत्नागिरी में एक मराठी चितवनवन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता, गंगाधर तिलक एक स्कूल शिक्षक थे और संस्कृत के विद्वान थे,जब तिलक सोलह वर्ष के थे तभी उनकी मृत्यु हो गई थी। तिलक ने 1877 में पुणे के दक्कन कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। तिलक कॉलेज की शिक्षा प्राप्त करने वाले भारतीयों की पहली पीढ़ी में से एक थे। 1871 में तिलक का विवाह तबाबाई से हुआ जब वह सोलह वर्ष के थे। उन्होंने 1877 में पुणे के डेक्कन कॉलेज से प्रथम श्रेणी में कला स्नातक प्राप्त किया। स्नातक होने के बाद, तिलक ने पुणे के एक निजी स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। मगर सह कर्मचारियों के साथ वैचारिक मतभेदों के कारण उन्होंने नौकरी छोड़ दी। बाद में वह एक पत्रकार बन गए। वह एक महान समाज सुधारक भी थे। उन्होंने बाल विवाह जैसी कुरीतियों का विरोध किया और इसे प्रतिबंधित करने की मांग की। वे विधवा पुनर्विवाह के प्रबल समर्थक भी थे।
1890 में कांग्रेस से जुड़े बाल गंगाधर तिलक सन 1890 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े। अपने जीवन काल में वह पुणे म्युनिसिपल परिषद और बॉम्बे लेजिस्लेचर के सदस्य और बॉम्बे यूनिवर्सिटी के निर्वाचित फैलो भी रहे|
सन 1897 में अंग्रेज़ सरकार ने तिलक पर भड़काऊ लेखों के माध्यम से जनता को उकसाने, कानून को तोड़ने और शांति व्यवस्था भंग करने का आरोप लगाया। उन्हें डेढ़ साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई। सजा काटने के बाद तिलक सन 1899 में रिहा हुए और स्वदेशी आंदोलन को शुरू किया| उन्होंने महाराष्ट्र के गाँव-गाँव तक स्वदेशी आंदोलन का संदेश पहुँचाया।
1906 में विद्रोह के आरोप में गिरफ्तार सन 1906 में अंग्रेज़ सरकार ने तिलक को विद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया। सुनवाई के पश्चात उन्हें ६ साल की सजा सुनाई गयी और उन्हें मांडले (बर्मा) जेल ले जाया गया। जेल में उन्होंने अपना अधिकतर समय पाठन-लेखन में बिताया। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘गीता रहस्य’ इसी दौरान लिखी। तिलक 1914 को जेल से रिहा हुए। तत्पश्चात, वह कांग्रेस के दोनों गुटों को एक साथ लाने की कोशिश में जुट गए लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली। एक अगस्त 1920 में उनकी मृत्यु हो गई।