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नई दिल्ली

बायो फ्यूल विमान उड़ाने में भारत को ऐसे मिली कामयाबी, 500 भारतीय किसानों ने की मदद

2012 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम (आइआइपी) की टीम कनाडा की धरती पर बायो फ्यूल विमान उड़ाने में मदद कर चुकी है।

नई दिल्लीAug 27, 2018 / 08:05 pm

Mazkoor

spicejet

बायो फ्यूल विमान उड़ाने में भारत को ऐसे मिली कामयाबी, 500 भारतीय किसानों ने की मदद

नई दिल्ली : सोमवार यानी 27 अगस्‍त को भारत उस खास ग्रुप में शामिल हो गया, जिसमें अभी तक मात्र तीन विकसित देश ही शामिल थे। इनमें से भी आस्‍ट्रेलिया और अमरीका ने यह उपलब्धि इसी साल जनवरी में हासिल की है। इसी के साथ वह बायो फ्यूल से हवाई जहाज उड़ाने वाला पहला विकाशील देश बन गया। इस कार्य को अंजाम स्पाइसजेट के विमान ने दिया। इसके चीफ स्ट्रेटजी ऑफिसर जीपी गुप्ता ने बताया कि कि विमान रविवार को डीजीसीए की निगरानी 6.31 बजे सुबह टेक ऑफ की और 6.53 में लौट आई और सोमवार को उसने देहरादून से दिल्‍ली की उड़ान भरी। लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि यह कामयाबी एक दिन में नहीं मिली है। वर्षों की मेहनत का परिणाम है यह। आइए जानते हैं कि भारत ने यह कामयाबी कैसे हासिल की।

2012 में भी भारत कर चुका है ऐसा
बता दें कि भारत इससे पहले भी बायो फ्यूल से हवाई जहाज उड़ाने का कारनामा कर चुका है, लेकिन तब उसने इसमें कनाडा की मदद की थी। बात 2012 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम (आइआइपी) की टीम ने कनाडा की धरती पर उनका विमान उड़ाया था। लेकिन इस बार की उपलब्धि काफी बड़ी है। इस बार भारत ने बिना किसी मदद के स्‍वदेशी तकनीक के जरिये यह हासिल किया है।

ये आई बाधाएं
बता दें कि भारत में बायो फ्यूल से विमान उड़ाने की कोशिश 2009 से प्रयास चल रही थी, लेकिन उसमें कामयाबी अब मिली है। पहली बाधा तब आई, जब इसके लिए तैयार हुआ किंग फिशर घाटे में चलने के कारण इस अभियान से पीछे हट गया। उसके बाद तो किंग फिशर एयरलाइंस ही दिवालिया हो गई और उसके ऑनर विजय माल्‍या देश छोड़कर भाग निकले। उसके बाद जेट एयरवेज, एयर इंडिया और गो एयर ने भी बायो फ्यूल से हवाई जहाज उड़ाने की योजना बनाई, लेकिन किसी न किसी कारण से इसे अंजाम नहीं दे पाईं। इसके बाद जेट एयरवेज सामने आया। इसके साथ अच्‍छी बात यह थी कि इसके विमान में उसी इंजन के जहाज पहले थे, जिस इंजन पर दूसरे विकसित देशों ने ऐसा कर दिखाया था।

2009 में बायो फ्यूल के पेटेंट के बाद आई तेजी
हालांकि 2009 से इस दिशा में भारत की कोशिशें जारी थी, लेकिन पहला मील का पत्‍थर वह था, जब 2012 में पेट्रोलियम विज्ञानी अनिल सिन्हा ने बायो फ्यूल बनाने की टेक्नोलॉजी का पेटेंट कराया। इसके बाद कर्नाटक बायोफ्यूल डवलपमेंट बोर्ड के सीईओ रहे वाइबी रामाकृष्ण ने इतना बायो फ्यूल बनाया, जिससे विमान उड़ सके। इस विमान को उड़ाने के लिए बने बायो फ्यूल को उसी आइआइपी की लैब में तैयार किया गया है, जो 2012 में इस काम में कनाडा की भी मदद कर चुकी है। इसके निदेशक अंजन रे ने यह जानकारी दी कि उनका लैब एक घंटे में चार लीटर बायो फ्यूल बनाने में सक्षम है।

छत्‍तीसगढ़ के किसानों ने भी की मदद
बायो फ्यूल बनाने के लिए छत्तीसगढ़ के 500 किसानों से जट्रोफा के दो टन बीज लेकर इससे करीब 400 लीटर फ्यूल बनाया गया। इसके लिए आइआइपी के 20 लोग करीब 45 दिन तक लगातार काम करते रहे। 300 लीटर बायो फ्यूल के साथ 900 लीटर एटीएफ विमान के राइट विंग में भरा गया। लेफ्ट विंग में 1200 लीटर एटीएफ इमरजेंसी के लिए डाला गया। इसके बाद यह विमान उड़ा। इस 78 सीटर विमान में आइआइपी के निदेशक अंजन रे, केटालिसिस डिविजन की प्रमुख अंशु नानौती, छत्तीसगढ़ बायोफ्यूल डेवलपमेंट अथॉरिटी के प्रोजेक्ट अफसर सुमित सरकार समेत प्रोजेक्ट से जुड़े तमाम अफसर मौजूद थे।

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