अनुच्छेद 370 की बहाली के बयान से फारूक अब्दुल्ला चीन में और सर्जिकल स्ट्राइक से राहुल पाकिस्तान में बने थे हीरो न्यायमूर्ति राकेश कुमार और न्यायमूर्ति जे उमा देवी समेत आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने पाया कि राज्य पुलिस का अपराध जांच विभाग (सीआईडी) न्यायपालिका के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने में विफल रहा है, इसलिए निष्पक्ष जांच के लिए मामले को सीबीआई को सौंपा जा रहा है।
पीठ ने सीबीआई को निर्देश दिया कि वह जांच करे, आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करे और आठ सप्ताह के भीतर उच्च न्यायालय को रिपोर्ट सौंपे। अदालत ने राज्य सरकार से मामले की जांच में सीबीआई को सभी सहयोग करने के लिए कहा है।
बीते 8 अक्टूबर को हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल द्वारा दायर याचिका पर बहस को समाप्त करते हुए कहा कि CID ने सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर न्यायाधीशों के खिलाफ अपमानजनक पोस्ट की शिकायतों पर कोई कदम नहीं उठाया है। उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता लक्ष्मी नारायण के अनुसार, अदालत ने देखा था कि सीआईडी ने केवल कुछ सोशल मीडिया कार्यकर्ताओं पर ही एफआईआर दर्ज की थी, हालांकि राज्य सरकार के खिलाफ रिश्वत देने के लिए 90 से अधिक लोगों ने न्यायपालिका के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की थी।
उन्होंने कहा, “CID फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपमानजनक टिप्पणियों को हटाने में भी विफल रही। न्यायपालिका के खिलाफ टिप्पणी करने वाले वाईएसआरसी नेताओं के खिलाफ भी उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की।”
बिहार समेत अन्य राज्यों के चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग का बड़ा आदेश, पहली बार किया जाएगा यह काम सुनवाई के दौरान अदालत की पीठ ने न्यायपालिका के खिलाफ अन्य लोगों के अलावा, विधानसभा अध्यक्ष तम्मीनेनी सीताराम, उपमुख्यमंत्री नारायण स्वामी, सांसद विजयसाई रेड्डी और एन सुरेश और पूर्व विधायक अमनची कृष्णामोहन द्वारा की गई कथित टिप्पणी को गलत पाया। उन्होंने इसे न्यायपालिका पर सीधे हमले के रूप में पाया।
यह भी देखा गया कि CID ऐसे लोगों के खिलाफ मामले दर्ज कर रहा था जो हाईकोर्ट द्वारा विशिष्ट शिकायत पर कार्रवाई नहीं करते हुए सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना कर रहे थे। महाधिवक्ता श्रीराम और CID के वकील निरंजन रेड्डी ने कहा कि अगर CID पर कोई निष्कर्ष निकाले बिना अदालत CBI जांच का आदेश देती है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।