रिफंड का दावा करना बुरे सपने जैसा इसमें कई दर, शर्ते, अपवाद और छूटों का एक जटिल मायाजाल है। जो एक जानकार करदाता को भी पूरी तरह से आश्चर्यचकित कर देता है। सभी पंजीकृत विक्रेता करदाताओं के पास पूरी जानकारी नहीं है जिसके कारण वे कर संग्राहक की दया पर पूरी तरह निर्भर हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान में 0.25, 3, 5, 12,18 और 28 फीसदी की छह दरें है। इसके अतिरिक्त शून्य दर और छूट प्राप्त सामान हैं। कर दरों में कोई भी परिवर्तन छोटे व्यवसायों के गहरे घावों में चाकू से उसे और गहरा करने जैसा है। जीएसटी के 5 साल बाद भी दाखिल की जाने वाली रिटर्न की संख्या का कोई युक्तिसंगत आधार नहीं है। ई.वे बिल और ई.चालान का अनुपालन आसान नहीं है। रिफंड का दावा करना एक बुरे सपने की तरह है और इसके लिए अदालतों में हजारों मामले चल रहे हैं।
राज्यों के साथ विश्वासघात चिदंबरम ने कहा कि 2017 में वादे के बावजूदए किसी भी राज्य ने 14 प्रतिशत की वार्षिक राजस्व वृद्धि दर हासिल नहीं की है। राज्यों ने मुआवजा उपकर के माध्यम से अंतर को पाट दिया है, लेकिन पिछले दो वर्षों में मुआवजा उपकर में कमी के कारण निरंतर कर्जा लेकर इस अंतर को भरा जा रहा है। राज्यों को उनकी इच्छा के विरुद्ध व्यवस्था को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया। इस कारण आपसी अविश्वास और गहरा हुआ और राज्यों के ऊपर कर्ज का बोझ बढ़ता चला गया। कोविड .19 महामारी के दौरान जब राज्यों को राजस्व की सर्वाधिक आवश्यकता थी, उन परिस्थितियों में राजकोषीय हस्तांतरण में विलंब से राज्यों को एक गंभीर झटका लगा। कई राज्यों के वित्त मंत्रियों ने सार्वजनिक रूप से इस संबंध में केन्द्र पर विश्वासघात करने का आरोप तक लगाया है। उनमें से कुछ ने तो जीएसटी पर पुनर्विचार तक की मांग कर दी है।