जानकारों का कहना है कि दिल्ली के हवाई अड्डे पर कैट-3बी आईएलएस प्रणाली तीन रन-वे पर स्थापित है। इसके इस्तेमाल के लिए विमानन कम्पनियों के विमानों इस तकनीक से लैस करने के साथ इस तकनीक के प्रयोग के लिए प्रशिक्षित पायलटों की आवश्यकता होती है, लेकिन घरेलू विमानन कम्पनियों के अनुमानतः पांच प्रतिशत पायलट भी प्रशिक्षित नहीं है। इस वजह से घरेलू उड़ानें कोहरे के कारण सर्वाधिक प्रभावित हो रही हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार घरेलू विमानन कम्पनियों के बेड़े में कैट-3 आईएलएस तकनीक लगी होने के बावजूद कोहरे में लैंडिंग नहीं करवाने का बड़ा कारण ट्रैंड पायलट्स का अभाव है। इसके प्रशिक्षण पर प्रति पायलट लगभग दस लाख रुपए से ज्यादा का खर्च आता है। इसमें भी खतरा ये बना रहता है कि ट्रेनिंग के बाद पायलट किसी विदेशी एयरलाइन कम्पनी में नहीं चला जाए। कारण कि विदेशों में जहां ठंड ज्यादा पड़ती है और कोहरा छाया रहता है, वहां इन पायलटों की मांग अधिक है। भारत में कोहरा कुछ समय के लिए ही पड़ता है, इस वजह से भी कम्पनियां पायलटों को ट्रेनिंग गिदलवाने से बचती हैं।
क्या है कैट-3 आईएलएस तकनीक
आईएलएस एक मार्गदर्शन प्रणाली है जो रेडियो सिग्नलों और कभी-कभी उच्च तीव्रता वाले प्रकाश सरणी की मदद से विमानों को कम दृश्यता की स्थिति में उतरने में मदद करती है। इसमें पायलट को उल्टी गिनती के जरिए ध्वनि संकेत मिलता है कि विमान रनवे से कितनी दूर है, कब फ्लैप तैनात करना है और बाद में कब ब्रेक लगाना है।