बता दें, पश्चिम बंगाल के नाम बदलने की प्रक्रिया पहली बार साल 2011 में शुरू हुई थी, तब केंद्र सरकार ने इसे नामंज़ूर कर दिया था। इसके बाद 26 अगस्त 2016 को राज्य सरकार ने तीन अलग-अलग भाषाओं में नाम प्रस्तावित किए थे। ये नाम थे- बंगाली में बांग्ला, अंग्रेजी में बेंगाल और हिंदी में बंगाल। हालांकि कि इस प्रस्ताव को भी केंद्र सरकार ने यह कहकर नामंज़ूर कर दिया कि राज्य के हिंदी, अंग्रेज़ी और बांग्ला भाषाओं में अलग अलग नाम रखना सही नहीं होगा।
इसके बाद पश्चिम बंगाल की ममता सरकार ने 26 जुलाई 2018 को पश्चिम बंगाल विधानसभा में राज्य का नाम ‘बांग्ला’ करने का प्रस्ताव पास किया था। इस प्रस्ताव को मंजूरी के लिए गृह मंत्रालय के पास भेजा गया था। पश्चिम बंगाल का नाम ‘बांग्ला’ रखने की मांग को गृह मंत्रालय ने ठुकरा दिया था। गृह मंत्रालय ने कहा था कि नाम बदलना संभव नहीं है क्योंकि इसके लिए संविधान में संशोधन की जरूरत है।
वहीं 2019 में राज्य का नाम बदलकर बांग्ला करने को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था। उन्होंने पीएम मोदी से मांग की कि संसद के मानसून सत्र में ही पश्चिम बंगाल का नाम बदलकर ‘बांग्ला’ किया जाए। ममता ने पत्र में लिखा कि बंगाल के लोगों की लंबे समय से यह इच्छा रही है और नाम बदलने को लेकर संविधान के अनुसार काम करना चाहिए।
आज गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा कि केंद्र ने पिछले पांच वर्षों में सात शहरों और नगरों के नाम बदलने को मंजूरी प्रदान की है जिनमें इलाहाबाद का नाम प्रयागराज करना भी शामिल है। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से प्रदेश का नाम तीनों भाषाओं- बांग्ला, अंग्रेजी और हिंदी में ‘बांग्ला’ करने का प्रस्ताव आया है।
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मंत्री ने बताया कि उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज करने को 15 दिसंबर, 2018 को अनापत्ति प्रमाणपत्र (NOC) दिया गया। दरअसल, अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (AITC) के सांसद सैदा अहमद ने देश भर में शहरों का नाम बदलने के लिए मंजूरी के लिए गृह मंत्रालय को प्राप्त प्रस्तावों की बारीकियों और मात्रा के बारे में पूछताछ की थी, इस बीच उन्होंने यह जानकारी दी। यह भी पढ़ें