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असम में पांच पर बीजेपी का कब्जा, कांग्रेस को लगाना होगा जोर, जानिए अन्य पार्टियों का हाल

Lok Sabha Elections 2024 : राजनीतिक मिजाज की बात करें तो कुछ खास माहौल नहीं दिखाई देता है। एक दो जगहों पर भाजपा का प्रचार वाहन दिखता है, बाकी कुछेक जगहों पर पार्टी के पोस्टर और बैनर। पढ़िए आनंद मणि त्रिपाठी की विशेष रिपोर्ट…

नई दिल्लीApr 18, 2024 / 08:43 am

Shaitan Prajapat

Lok Sabha Elections 2024 : चाय… वह पेय है कि तबीयत से बनाई जाए तो जुबान मीठी कर दे और बदजुबानी पर चढ़ जाए तो पूरी राजनीति ही साफ कर दे। कांग्रेस पार्टी से बेहतर चाय और चायवाले का असर कौन जानता है? जिसने असम के चाय बागान से कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ कर दिया है। देश की सबसे महंगी चाय का उत्पादन करने वाले डिब्रूगढ़ जिले के हवाईअड्डे पर जब उतरकर शहर की तरफ आप बढ़ते हैं तो सड़क के दोनों तरफ हरे-भरे चाय के बागान अपनी बांहें खोले आपका स्वागत करते दिखाई देते हैं। चायपत्तियों की खुशबू मिजाज को तरबतर कर देती है। राजनीतिक मिजाज की बात करें तो कुछ खास माहौल नहीं दिखाई देता है। एक दो जगहों पर भाजपा का प्रचार वाहन दिखता है, बाकी कुछेक जगहों पर पार्टी के पोस्टर और बैनर। डिब्रूगढ़, सोनितपुर और लखीमपुर चाय बागान में करीने से कटी चाय की पत्तियां इस बात का संकेत दे रही हैं कि यहां राजनीति भी एकसार हो चुकी है।
हालांकि जोरहाट के बागान में कहीं-कहीं पत्तियों के रंग में थोड़ा परिवर्तन दिखता है लेकिन कुछ पत्तियों का यह परिवर्तन यहां चाय की फसल पर असर नहीं डालता नहीं दिख रहा हैं। काजीरंगा में एक सींग वाले गैंडे की तरह ही राजनीति में भी एक ही दिखाई देता है।
जोरहाट : यहां चाय पर शोध, 17 बार युद्ध में हारे थे मुगल
सबसे महंगी चाय भले ही डिब्रूगढ़ में बनी हो लेकिन चाय की राजधानी जोरहाट को ही कहा जाता है। यहां सिर्फ चाय पैदा ही नहीं होती है बल्कि यहां किस्में भी तैयार होती हैं। विश्व प्रसिद्ध चाय अनुसंधान संस्थान यानी टोकलाई का प्रायोगिक केंद्र यहीं पर है। इस बार यह राजनीति का टेस्टिंग सेंटर बन गया है। कांग्रेस ने यहां गौरव गोगोई को चुनाव में उतारा है तो वहीं भाजपा ने तपन गोगोई को। दोनों एक ही समाज से आते हैं। ऐसे में वर्ग राजनीति का मामला तो यहां बराबर है लेकिन 10 विधानसभा सीटों वाली लोकसभा में 10 में से पांच सीटों पर भाजपा का कब्जा है और दो पर उसकी सहयोगी असम गण परिषद का। ऐसे में गौरव गोगोई को इस सीट को कांग्रेस से जोडऩे के लिए काफी जोर लगाना होगा। अहोम राजवंश की समृद्ध विरासत को संजोए सांस्कृतिक राजधानी कहलाने वाला यह इलाका कभी भी मुगलों के अधीन नहीं रहा और सत्रह बार युद्ध में उन्हें हराया।
राजनीति के लिहाज से कहें तो यह सीट कइयों का मुगालता भी दूर कर देती है। गौरव कलियाबोर से चुनाव लड़ा करते थे लेकिन परिसीमन के बाद उसका गणित ऐसा बदला कि उन्हें जोरहाट आना पड़ा। गौरव गोगोई कहते हैंं कि इस समय उनका ध्यान अर्जुन की तरह इसी सीट पर है। तपन गोगोई कहते हैं कि यहां हमने लोगों को जोड़ा है तो ऐसे में हमें चुनाव लडऩे में जोर कम आ रहा है। वैष्णव पंथ को मानने वाले इस क्षेत्र में शैव संप्रदाय का 200 साल से अधिक पुराना शैव मंदिर है। यह एक ऐसा मंदिर है जहां शिवलिंग भूमि के गर्भ में है। इसे सिबसागर यानी शिव भगवान का समुद्र कहा जाता है। अब देखना यह है कि राजनीति के सागर से किसका जहाज किनारे लगता है।
लखीमपुर: यहां कांग्रेस को कमजोर कर रही सीपीआई और तृणमूल
क्षेत्र में यह एकमात्र लोकसभा है जहां धान का वर्चस्व है। यह इलाका ऐसा है कि न तो यहां धान में खाद डालने की जरूरत होती है और न ही बहुत मेहनत की। राजनीति भी यहां कुछ इसी तरह की है। एक बार यहां फसल रोप दी तो फिर फुरसत है। पहले कांग्रेस ने करीब छह दशक तक राज किया। अब एक दशक से भाजपा की फसल यहां लहलहा रही है। यहां भूगोल से एमए कर रही उमीका कहती हैं कि लखीम शब्द लक्ष्मी से निकला है और यहां धान को लक्ष्मी मानते हैं। पुर का मतलब है परिपूर्ण। यहां कभी भी कोई कमी नहीं होती है। सभी यहां अच्छे से रहते हैं। राजनीति में भी बहुत ज्यादा हडबड़ी नहीं है। भाजपा के अशोक सिंघल कहते हैं कि इस इलाके में प्रधानमंत्री मोदी ने बहुत काम किया है। कोई मुकाबले में नहीं है। प्रबदान बरुआ को यहां से फिर से उम्मीदवार बनाया गया है। यह वही क्षेत्र है जहां से सर्वानंद सोनवाल पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए थे। यहां कांग्रेस की तरफ से उदय शंकर हजारिका चुनाव लड़ रहे हैं। इन्हें ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल और सीपीआई ने भी अपने उम्मीदवार उतारे हैं। ये यहां कांग्रेस को नुकसान पहुंचा रही हैं।
काजीरंगा: एक ही सींग, एक ही नीति
काजीरंगा देश ही नहीं दुनिया में अपने एक सींग वाले गैंडे के लिए प्रसिद्ध है। राजनीति भी यहां इसी तरह से दिखाई दे रही है। परिसीमन के बाद काजीरंगा लोकसभा की नई सीट तैयार हुई है। परिसीमन से पहले कांग्रेस और वामदल का यहां पूरी तरह कब्जा रहा। 2014 में यहां बदलाव हुआ। यहां की राजनीति में भी चाय बागान का ही वर्चस्व है। ऐसे में भाजपा ने चाय बागान ट्राइब से आने वाले कमाख्या प्रसाद तासा को उतारा है। कांग्रेस ने इस सीट पर अपनी विधायक रोसलिना तिर्के को उतारा है। कांग्रेस और भाजपा की सीधी लड़ाई है।
डिब्रूगढ़ : आप ने ठोकी ताल, त्रिकोणीय हुआ संघर्ष
असम की राजनीति में डिब्रूगढ़ की राजनीतिक हैसियत का अंदाजा आप सिर्फ इस बात से लगा सकते हैं कि देश में यह एक लोकसभा क्षेत्र ऐसा है जहां चार सांसद (रामेश्वर तेली, सर्वानंद सोनवाल, पवित्र मरग्रीहता और रंजन गोगोई) है। तीन राज्यसभा और एक लोकसभा। इसके अलावा इसी क्षेत्र से पीएम मोदी ने अपने मंत्री मंडल में दो केंद्रीय मंत्री रखे हैं। भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनवाल को उतारा है तो वहीं कांग्रेस ने यहां अपना प्रत्याशी ही नहीं खड़ा किया है। वह असम जातीय परिषद के लुरिन ज्योति गोगोई को समर्थन दे रही है। आम आदमी पार्टी ने मनोज धनवार को मैदान में उतारा है।
सोनितपुर : परिसीमन ने बदल दी चुनाव की चौसर
बाणासुर की धरती पर आपका स्वागत है। जी, हां कृष्ण के पुत्र अनिरुद्ध से प्रेम करने वाली राजकुमारी उषा की जन्मस्थली। अनिरुद्ध और उषा के प्रेम के कारण यहां हुए युद्ध से खून के शहर यानी शोणितपुर के रूप में पहचान मिली। अरुणाचल प्रदेश की सीमा से सटे इस इलाके की राजनीति में कहीं भी कोई रक्त चरित्र नहीं दिखता। इस सीट की चौसर परिसीमन के बाद बदल गई है। हालांकि इस सीट पर बदलाव ज्यादा नहीं है। इसके कारण भाजपा यहां बढ़त बनाते हुए दिखाई दे रही है। भाजपा ने यहां से रंजीत दत्ता को चुनाव मैदान में उतारा है तो कांग्रेस ने प्रेम लाल गुंजू को लेकिन यहां भाजपा की लड़ाई कांग्रेस से नहीं बल्कि बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) से होने जा रही है। राजू देवरी को बीपीएफ ने चुनाव में उतारा है।

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