LOCKDOWN SITUATION: आज ही काम नहीं आए तो फिर कब?
मेहमानों की मिजबानी में पलक-पांवड़े बिछाने वाले राजस्थान की माटी भले ही कमाने-खाने की आस में बरसों पहले हजारों-लाखों प्रवासी राजस्थानियों से छूट गई थी, लेकिन वो अमिट संस्कृति तो उनके सदा साथ ही रही। तभी तो जब भी राजस्थान से कोई छोटा-बड़ा नेता सूरत, अहमदाबाद, मुंबई, पुणे, बेंगलुरू, चैन्नई, कोलकाता में इन प्रवासियों के बीच पहुंचता तो यह उसके स्वागत में उन्हें ‘फावणा’ मान जुट जाते हैं
LOCKDOWN SITUATION: आज ही काम नहीं आए तो फिर कब?
सूरत. मेहमानों की मिजबानी में पलक-पांवड़े बिछाने वाले राजस्थान की माटी भले ही कमाने-खाने की आस में बरसों पहले हजारों-लाखों प्रवासी राजस्थानियों से छूट गई थी, लेकिन वो अमिट संस्कृति तो उनके सदा साथ ही रही। तभी तो जब भी राजस्थान से कोई छोटा-बड़ा नेता सूरत, अहमदाबाद, मुंबई, पुणे, बेंगलुरू, चैन्नई, कोलकाता में इन प्रवासियों के बीच पहुंचता तो यह उसके स्वागत में उन्हें ‘फावणा’ मान जुट जाते हैं। फावणा का अर्थ राजस्थान के ढुंढ़ाड़ अंचल में दामाद से होता है और अब यह समझना आसान हो जाता है कि मेहमानों को प्रवासी राजस्थानी किस हद का दर्जा देकर उसका सम्मान करते हैं। लेकिन आज वे ही फावणे रूपी नेता आपदा की इस घड़ी में उनकी कदर नहीं कर रहे हैं, जिन्होंने उनकी जरूरत के वक्त सिर-आंखों पर बिठाकर रखा। ना केवल मान-सम्मान दिया बल्कि नोट और वोट भी थोक में दिए। राजस्थान के भाजपा व कांग्रेस नेताओं से सूरत समेत देश के अन्य प्रमुख शहरों में बसे प्रवासी राजस्थानियों का चोली-दामन का साथ है मगर आज बुरे वक्त में यह साथ दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा है। एक सच्चाई की बात करें तो जरूरत के वक्त सबसे ज्यादा दूर आज भाजपा-कांग्रेस के वे नेता ही खड़े है जो कि चुनाव भी इन प्रवासियों के दम पर ही जीतते हैं। जी हां गुजरात-राजस्थान की बॉर्डर से सटी विधानसभा व लोकसभा का पिछले चार-चार चुनाव का इतिहास उठाकर देखा जा सकता है कि सही मायने में उन्हें जीत किसकी वजह से हासिल हुई थी और आज उसी बॉर्डर पर प्रवासी राजस्थानियों के साथ जो व्यवहार राजस्थान सरकार कर रही है वो निंदनीय है और उससे भी घोर निंदनीय है प्रदेश के बड़े-बड़े नेताओं के रोज बदलते बयान वो भी सरकारी। यूं लगता है कि राजस्थान में सत्तापक्ष कांग्रेस और प्रतिपक्ष में बैठी भाजपा दोनों को ही प्रवासी राजस्थानियों से लगाव मात्र दिखाने भर का है। तभी तो जमीनी स्तर पर दोनों की ओर से ऐसे कोई प्रयास कोरोना संकट से पनपे लॉकडाउन में प्रवासी राजस्थानियों की वापसी के लिए नहीं किए गए और जो किए भी गए तो वे मात्र सरकारी व कागजी प्रयास है जो नैतिक दायित्व था लेकिन उसमें भी अनगिनत कमियों के साथ। प्रदेश की गहलोत सरकार ने प्रवासियों को प्रदेश से जोडऩे के लिए कुछ महीनों पहले ही राजस्थान फाउंडेशन को भी जिंदा किया, लेकिन अफसोस वो भी फिलहाल कागजी संगठन ही बना दिख रहा है। तभी तो आज अकेले सूरत से मारवाड़ अंचल के साढ़े तीन हजार प्रवासी राजस्थानियों की टिकट तैयार है पर ट्रेनों की मंजूरी के ठिकाने नहीं। यह सही है कोरोना संक्रमण का असर प्रवासियों के माध्यम से राजस्थान को प्रभावित नहीं करना चाहिए और इसके प्रति पूरी सावधानी रखने की जिम्मेदारी स्वयं प्रवासी राजस्थानी की भी है, लेकिन इसका अर्थ यह तो नहीं कि आप अपनी सरकारी जवाबदेही को ही छोड़ दे। प्रवासी राजस्थानी लौटा है तो उसकी जांच कीजिए, क्वारंटाइन कीजिए और सुरक्षित लगे तब घर छोडि़ए पर बॉर्डर पर भूखा-प्यासा तो मत छोडि़ए। एक दिन सरकार कहती है कि किसी को प्रवेश नहीं देंगे, दूसरे दिन कहती है ई-परमिशन वाले ही आ सकते हैं। सरकार ही बताती है कि ई-पोर्टल पर 21 लाख प्रवासियों ने लौटने के लिए पंजीकरण करवाया है तो फिर यह खेल क्यों? एक बात राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही याद रखना चाहिए कि वे दोनों ही प्रवासियों के एक नहीं अनेकों एहसान के बोझ तले दबे हैं। प्रवासियों ने आपकी जरूरत के वक्त आपको हरसंभव सहयोग दिया है फिर क्या छोटा और क्या बड़ा नेता। तो आज उन्हें यूं मत छोडि़ए और बयानवीर नेता नहीं बल्कि कर्मवीर नेता बनकर उन्हें इस बुरे वक्त में अपनाइए। इतना अवश्य कीजिए प्रवासियों से कोरोना संक्रमण नहीं फैले, उसके लिए चिकित्सा स्तर पर पूरी एहतियात बरतिए।
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