script14 दिन की जगह 7 दिन ही भर्ती हो रहे कुपोषित बच्चे, कई तो आधा भी नहीं कर रहे कोर्स पूरा | Malnourished children are being admitted for 7 days instead of 14 days, many are not even completing half of the course | Patrika News
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14 दिन की जगह 7 दिन ही भर्ती हो रहे कुपोषित बच्चे, कई तो आधा भी नहीं कर रहे कोर्स पूरा

जिला अस्पताल के एनआरसी सेंटर में भर्ती कुपोषित बच्चों को परिजन १४ दिनों तक का कोर्स नहीं करा रहे हैं। सात दिन में ही बच्चों की छुट्टी कराकर ले जा रहे हैं। वहीं, कुछ परिजन ऐसे भी हैं, जो कुपोषित बच्चों को सात दिन के पहले ही बगैर बताए गायब हो रहे हैं।

दमोहMay 19, 2024 / 07:52 pm

आकाश तिवारी

-जिला अस्पताल के एनआरसी सेंटर में १७ बच्चे भर्ती

-आगनबाड़ी केंद्रों की लापरवाही के चलते पिछले महीनों में खाली पड़ रहे पलंग

दमोह. जिला अस्पताल के एनआरसी सेंटर में भर्ती कुपोषित बच्चों को परिजन १४ दिनों तक का कोर्स नहीं करा रहे हैं। सात दिन में ही बच्चों की छुट्टी कराकर ले जा रहे हैं। वहीं, कुछ परिजन ऐसे भी हैं, जो कुपोषित बच्चों को सात दिन के पहले ही बगैर बताए गायब हो रहे हैं। इधर, एनआरसी सेंटर पर आगनबाड़ी केंद्रों से भी कुपोषित बच्चों को भर्ती कराने पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। यहां भर्ती होने वाले अधिकांश कुपोषित बच्चे जिला अस्पताल के शिशु रोग विभाग की ओपीडी से ही भर्ती कराए जा रहे हैं।
रविवार को एनआरसी में १७ बच्चे भर्ती थे। जबकि पलंग संख्या यहां की २० है। यहां पर तैनात स्टाफ की माने तो बीच-बीच में तो एनआरसी में एक-दो बच्चे ही भर्ती रहते हैं। आगनबाड़ी केंद्रों से बच्चे न लाए जाने के कारण यह स्थिति बन रही है।
-कुपोषण का दंश झेल रहा जिला
शहरी क्षेत्र के एनआरसी सेंटर में भर्ती बच्चों की संख्या को देखकर ऐसा लगता है जैसे दमोह ब्लॉक में कुपोषण खत्म हो गया हो, पर ऐसा नहीं है। शहरी क्षेत्र में ही कुपोषित बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा है। पर देखा जा रहा है कि जागरुकता की कमी के कारण कई परिजन बच्चों को एनआरसी में भर्ती नहीं कराना चाहते हैं। वजन बढ़ाने का सीरप आदि पिलाकर कुपोषण को दूर करने में जुटे हैं। जबकि शासन स्तर से कुपोषण दूर करने के लिए एफ-७५ और एफ १०० फार्मूले के तहत पोषण आहार दिलाया जा रहा है।
-यह है नियम
कुपोषण को लेकर शासन ने जो गाइड लाइन बनाई है। उसके अनुसार प्रत्येक एनआरसी सेंटर पर कुपोषित बच्चों को १४ दिनों तक भर्ती होना जरूरी है। पर परिजन ७ दिन बाद छुट्टी करा रहे हैं। इधर, डॉक्टरों का कहना है कि सात दिन मिनिमम रूकना जरूरी है। यही वजह है कि मजदूरी या फिर अन्य परेशानी का बहाना बनाकर परिजन बच्चों को घर ले जा रहे हैं। शासन स्तर से कुपोषित बच्चे के एक परिजन को प्रतिदिन १२० रुपए का मानदेय भी दिया जाता है।
-सुबह ९ से दोपहर ३ बजे तक खुलें आगनबाड़ी केंद्र
जिले में कुपोषण पर अंकुश लगाने के लिए कलेक्टर ने आंगनबाड़ी सुपरवाइजर और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ एक बैठक की। कलेक्टर सुधीर कोचर ने संबंधित अधिकारियों को निर्देशित करते हुए कहा आंगनबाड़ी प्रतिदिन सुबह 9 बजे से दोपहर 3 बजे तक खुलें। शाम 4 बजे तक ग्राम भ्रमण और ग्रह भेट का कार्यक्रम प्रतिदिन किया जाए। बैठक में उन्होंने कहा आंगनबाडिय़ों के सुदृणीकरण के लिए महिलाओं और बच्चों के पोषण के लिए जो भी आवश्यक कदम उठाए जाने हैं, उठाए जाएंगे।
कोर्स पूरा न करने के यह हैं मुख्य कारण
-अधिकांश परिवार मजदूरी वर्ग से जुड़े।
-एफ-७५ और एफ-१०० फार्मूले पर यकीन न होना।
-जागरुकता की कमी।
-वजन कम होने को नहीं मानते कुपोषण।

वर्शन
वर्तमान में एनआरसी में १७ कुपोषित बच्चे भर्ती हैं। पिछले महीने एक बच्चे को बगैर सूचना के परिजन घर ले गए थे। मिनिमम ७ दिन सभी बच्चे भर्ती हो रहे हैं। बीच-बीच में एनआरसी में कुपोषित बच्चों की संख्या काफी कम रही है।
डॉ. सुनील जैन, प्रभारी एनआरसी

वर्शन
शिशु रोग विभाग की ओपीडी से अधिकांश कुपोषित बच्चे चिंहित हो रहे हैं। आगनबाड़ी केंद्रों से काफी कम संख्या में बच्चे भर्ती किए जा रहे हैं।

डॉ. राजेश नामदेव, सिविल सर्जन

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