हमारा क्या कसूर…?
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए राजस्थान व गुजरात दोनों ही सरकारों को प्रशासनिक स्तर पर एक राय बनाकर योजनाबद्ध तरीके से कार्य की आवश्यकता
सूरत. जन्मभूमि मरुधरा में छोटे-बड़े अपनों को छोडक़र दो वक्त की रोटी की आस में सैकड़ों किलोमीटर दूर आकर औद्योगिक नगरी सूरत को कर्मभूमि बनाने वाले हजारों प्रवासी राजस्थानियों का क्या कसूर है जो आज जन्मभूमि राजस्थान की ही सरकार अपनाने को तैयार नहीं। कर्मभूमि में भी कोरोना वायरस के संक्रमण काल के दौरान अपनों के बीच पहुंचने की आस लगाए बैठे इन प्रवासी राजस्थानियों को कम नहीं छला गया, जब सरकारी अनुमति ही नहीं थी तो क्यों इन्हें बैशाख की कड़ी धूप में फॉर्म भरवाने के लिए घंटों कतार में खड़ा रखवाया गया। हजारों प्रवासियों की राजस्थान यात्रा सुखद बनाने की बात कहने वाले नेता भी पहले तो आप फॉर्म भरो, व्यवस्था हो जाएगी, केंद्रीय स्तर पर बात चल रही है और जब आगे दाल नहीं गली तो कह दिया कि हम तो देख लो पूरी तैयारी कर रहे हैं आपके लिए, लेकिन राजस्थान सरकार ही कुछ नहीं कर रही। इस आरोप का पलटवार भी होना तय था और मरुधरा के मुखिया ने भी कह दिया कि यह बदमाश लोग है, केवल इस्तेमाल करते हैं। राजस्थान सरकार प्रवासियों के आगमन की पूरी तैयारियां कर रही है। दरअसल बात उनकी यह सही भी थी, क्योंकि आबुरोड़ के निकट माजल बॉर्डर पर कैम्प बनाया गया है और इसके साक्षी राजस्थान-गुजरात सीमा से सटी जालोर-सिरोही लोकसभा के भाजपा सांसद देवजी पटेल स्वयं भी है। फिर एकदम ऐसा क्या हो गया कि जो अपनाने को तैयार बैठे थे, उन्हें ही परदेस में बैठे प्रवासी राजस्थानी ऐसे नागवार लगे कि जिलाधीश ने खत लिखकर इन्हें अनुमति नहीं देने की बात तक लिख डाली।
खत में हॉटस्पॉट शहर-महानगर से प्रवासी राजस्थानियों को नहीं भेजने की बात लिखे जाने के बाद सोमवार मध्यरात्रि करीब सिरोही जिला कलक्टर फिर से संशोधित लेटर लिख भेजते है। अब इसमें वे बताते हैं कि गुजरात के सभी हॉटस्पॉट जिलों से निजी वाहनों में प्रवासी राजस्थानियों को जाने की अनुमति नहीं दी जाए, लेकिन सरकारी कैम्पों से राजस्थानी श्रमिकों को राजस्थान लाने की व्यवस्था की जा रही है। कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए राजस्थान व गुजरात दोनों ही सरकारों को प्रशासनिक स्तर पर एक राय बनाकर योजनाबद्ध तरीके से कार्य की आवश्यकता है।
यह बात भी सच है कि हॉटस्पॉट बने शहर-जिलों से लोगों का प्रवास फिलहाल रोकना जरूरी है, लेकिन बगैर आपसी समन्वय योजना के प्रवासी राजस्थानियों को यूं राजस्थान व गुजरात के बीच फुटबॉल बनाने के पीछे असल मंशा किसकी खराब है और वो ऐसा क्यूं कर रहे हैं…? यह यक्ष प्रश्न अवश्य हो सकता है लेकिन कर्मभूमि सूरत व जन्मभूमि राजस्थान के नेता सही मायने में अपने दिल पर हाथ रखकर यह कह सकते हैं कि प्रवासी राजस्थानियों के साथ उनका यह व्यवहार कहां तक न्यायोचित है…? यह तो कर्मभूमि में भी जब-जब आपको जिस तरह से भी जरुरत पड़ती है तब-तब तन-मन-धन से पूरा साथ देते है और जन्मभूमि में भी इनके सहयोग की ऐसी ही इबारतें गांव-कस्बे के चौक-चौराहों पर ही नहीं बल्कि स्कूल, धर्मशाला, होस्पीटल में लिखी हुई है। अब अगर बात केवल राजनीतिक फायदे की ही है तो वो आप कर्मभूमि वाले लो चाहे वे जन्मभूमि वाले…लेकिन आज हालात इन्हें यहां रहने से बेहतर वहां जाने के लगते हैं तो फिर बड़ा दिल रखकर जाने दीजिए और अपना लीजिए, इसमें भी ओछी राजनीति को क्यों बड़ा बनाते हैं आप लोग…?
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