Ahoi Ashtami 2018: जानिए कब है अहाेई अष्टमी अौर संतान प्राप्ति के लिए किस तरह करें पूजा
Ahoi Ashtami की Puja नोएडा के सेक्टर-44 में रहने वाले पंडित रामप्रवेश तिवारी का कहना है कि इस दिन कथा भी सुनाई जाती है, जिसका काफी महत्व है। Ahoi Ashtami के दिन अहोई माता की पूजा की जाती है। इस दिन दीवार पर गेरु से अहोई माता का चित्र बनाया जाता है। इसके साथ ही स्याहु और उनके सात पुत्रों का चित्र भी बनाया जाता है। शाम को इन इन चित्रों की पूजा की जाती है। इस दिन पूजा के बाद कथा सुनी और सुनाई जाती है।
अहोई अष्टमी 2018 कथा माना जाता है कि बहुत समय पहले एक साहुकार था। उसके सात बेटे, सात ही बहुएं और एक एक बेटी थी। दीपावली या दिवाली के मौके पर में वह मायके आई हुई थी। घर लीपने के लिए सातों बहुएं और साहुकार की बेटी जंगल में मिट्टी लाने गईं। जहां से वे मिट्टी ले रही थीं, वहां स्याहु (साही) अपनी संतानों के साथ रहती थी। साहुकार की बेटी की गलती से स्याहु की एक संतान की मौत हो जाती है। इससे नाराज होकर स्याहु उसे कहती है कि वह उसकी कोख बांध देगी। इसके बाद साहुकार की बेटी अपनी भाभियों से कहती है कि वे उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। उनमें से साहुकार की सबसे छोटी बहू अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। श्राप के कारण सबसे छोटी बहू के होने वाले बच्चे सात दिन बाद मर जाते हैं। इस पर वह एक पंडित से इसका कारण पूछती है। विनती करने पर पंडित उसे सुरही गाय की सेवा करने की सलाह देते हैं। सबसे छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर सुरही गाय उसे स्याहु के पास ले जाती है। रास्ते में जब दोनों आराम कर होते हैं तो छोटी बहू की नजर एक सांप पर जाती है। सांप गरुड़ पंखनी के बच्चे को डंसने वाला होता है। इसके बाद छोटी बहू सांप को मार देती है। गरूड़ पंखनी जब वहां पर अाती है तो उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे के मार दिया है। इसके बाद वह उस पर हमला कर देती है। जब गरुड़ पंखनी को पता चलता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे की जान बचाई है तो वह सुरही समेत उसको स्याहु के पास पहुंचा देती है। स्याहु भी छोटी बहू की सेवा से खुश होकर सात पुत्र और सात बहुओं का अशीर्वाद देती है। इस आशीर्वाद के कारण छोटी बहू का घर भर जाता है। माना जाता है कि अहोई का अर्थ ‘अनहोनी से बचाना’ भी होता है।