देश में भले ही बुलेट ट्रेन चलाने की जद्दोजहद चल रही हो, लेकिन हमारे देश में ट्रेनों की ऐसी हालत है कि लोगों को लोगों को सीट पर बैठकर सफर करना तो दूर ट्रेन के भीतर घुसने की भी जगह नहीं मिलती है। ट्रेनों में खचाखच भरी भीड़ की वजह से लोग जान जोखिम में डालकर सफर करने को मजबूर हैं। हालात ये है कि इलेक्ट्रिफाइड रूट पर हाइटेंशन लाइन के नीचे ट्रेन की छतों पर बैठकर सफर कर रहे हैं। देश की राजधानी से महज 55 किलोमीटर दूर रेल के सफर के दौरान हर रोज लोगों की जान पल-पल मौत से टकराती दिखाई देती है। 25 हज़ार का करंट लिए इन नंगे तारों से लगभग ढाई फिट नीचे जान जोखिम में डालकर सैकड़ों लोग रोजाना सफर करते हैं। मुसाफिरों का आरोप है कि केंद्र सरकार हर बार किराए में तो बढ़ोतरी कर देती है, लेकिन ट्रेनों की संख्या और अन्य सुविधाओं पर ध्यान नहीं देती है। दनकौर से दिल्ली और अलीगढ़ जाने के लिए मात्र 6 पैसेंजर ट्रेनें हैं। इससे मजबूरी में जगह न होने के चलते छतों पर चढ़कर यात्रा करना पड़ता है। लेकिन ट्रेन की छत पर बैठ कर यात्रा करना कितना जोखिम भरा है। ये जीआरपी के आंकड़े बताते हैं। आंकड़ों के अनुसार इस साल पिछले 6 महीनों में ट्रेन के 8 हादसे हो चुके हैं। इनमें से करीब 5 लोगों की छत से गिरकर बाकी के तीन लोगों की ट्रैक पर मोबाइल यूज करने से मौत हो चुकी है।
हालांकि, जब इस संबंध में जीआरपी दनकौर के चौकी इंचार्ज प्रमोद कुमार से बात की गई तो उन्होंने बताया कि छतों पर चढ़कर सफर करने वाले यात्रियों को हमेशा नीचे उतारा जाता है। इसके बाद भी लोग नहीं मानते हैं, तो उनके खिलाफ कार्रवाई भी की जाती है। इस तरह सफर करना रेल अधिनियम की धारा 156 के खिलाफ है। गौतम बुद्ध नगर जिले का दनकौर स्टेशन दूसरा बड़ा स्टेशन है। यहां से रोज दादरी, गाजियाबाद, शाहदरा, विवेक बिहार, दिल्ली और अलीगढ़ जैसी जगहों के लिए लगभग 70 हजार लोग प्रतिदिन यात्रा करते हैं। करीब 900 ट्रेनें यहां से गुजरती है। स्टेशन पर सुबह और शाम सबसे ज्यादा भीड़ होती है, क्योंकि ड्यूटी करने वाले इस समय सबसे ज्यादा होते हैं। लेकिन दनकौर स्टेशन पर आते ही रेलवे के स्वच्छता और सुरक्षा के दोनों ही दावे दम तोड़ती नज़र आती हैं। पूरे दनकौर स्टेशन कि सफाई का जिम्मा एक महिला सफाईकर्मी के कंधे पर है। तीन पद रिक्त है पर उन पर नियुक्ति नहीं हुई है। ऐसे में दनकौर स्टेशन पर सफाई व्यवस्था भी भगवान भरोसे हैं।