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इस शहर में पहली बार होगा अनोखा क्रिकेट टूर्नामेंट, धोनी-कोहली की जगह सेलिब्रीटी लगाएंगे चौके-छक्के सर्वप्रथम बात की जाए तो सबसे ज़्यादा डॉलफिन का शिकार बिहार में हुआ है। जहां 2010 से लेकर 2014 तक हर साल एक डॉलफिन को शिकारियों द्वारा मार दिया गया। गौरतलब है कि बिहार में गंगा का जल निकासी क्षेत्र (ड्रेनेज एरिया) तकरीबन 1,43,961 स्क्वायर कि.मी है। इसके बाद नंबर आता है केरल का, जहां 2010 में इस राष्ट्रीय जलचर जीव का शिकार किया गया, आखिर में नंबर आता है पश्चिम बंगाल का, जहां 2008 में एक डॉलफिन को शिकारियों द्वारा मार दिया गया। रंजन तोमर का कहना है कि भारत में डॉल्फिन का शिकार, दुर्घटना और उसके आवास से की जा रही छेड़छाड़ से इस जीव के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है। डॉल्फिन स्वच्छ व शांत जल क्षेत्र को पसंद करने वाली प्राणी है।जहाँ दो दशक पूर्व भारत में इनकी संख्या 5,000 के आस-पास थी, वहीं वर्तमान में यह संख्या घटकर करीब डेढ-दो हजार रह गई है। ब्रह्मपुत्रा नदी में भी जहाँ 1993 में प्रति सौ किलोमीटर में औसत 45 डॉल्फिन पाई जाती थी वहीं यह संख्या 1997 में घटकर 36 रह जाना इस अनोखे जीव की संख्या में तेजी से कमी की सूचना देता है। भारत में नदी की गहराई कम होने और नदी जल में उर्वरकों व रसायनों की अत्यधिक मात्रा मिलने से भी डॉल्फिन के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है।
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देश के सबसे बड़े एयरपोर्ट के लिए फंड देगी प्राधिकरण, बोर्ड बैठक में बजट को मंजूरी, देखें वीडियो बता दें कि डॉल्फिन का शिकार अधिकतर उसके तेल के लिये किया जाता है। अब वैज्ञानिक डॉल्फिन के तेल की रासायनिक संरचना जानने का प्रयत्न करने में लगे हुए हैं, ताकि वैकल्पिक तेल के निर्माण से डॉल्फिन का शिकार रूक जाए। भारत में डॉल्फिन के शिकार पर कानूनी रोक लगी हुई है। हमारे देश में इनके संरक्षण के लिये बिहार राज्य में गंगा नदी में विक्रमशिला डॉल्फिन अभ्यारण्य बनाया गया है। यह अभ्यारण्य सुलतानगंज से लेकर कहलगाँव तक के 50 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इसके बावजूद बिहार में ही इसका सबसे ज़्यादा शिकार किआ जाना चिंताजनक है, किन्तु 2014 के बाद इस राष्ट्रिय जल जीव का एक भी शिकार न किया जाना सुखद उम्मीद भी जगाता है।