रणथम्भौर में दोपहर 12 बजे पट खुलते ही जैसे ही गणेश की जन्म झांकी का दरस हुआ, मंदिर परिसर में ‘गणपति बप्पा मोरिया, मंगल मूर्ति मोरिया…गणेश जी महाराज तेरी होवे जय-जयकार… जैसे जयकारे से गूंज उठा। झांकी के दरस से निहाल हुए श्रद्धालुओं ने त्रिनेत्र के आगे झोली फैला कर सुख-समृद्धि की मनौती मांगी। इससे पहले महंत संजय दाधीच व बृजकिशोर दाधीच ने एक घंटे तक गजानन की स्वप्राकट्य प्रतिमा का अभिषेक किया और चोला चढ़ा कर शृंगार किया। साथ ही गणपति संग विराजित रिद्धि-सिद्धि की भी मनोरम झांकी सजाई गई। फिर पंचदीप से महाआरती की गई। आरती की स्वर लहरियों व जयकारों से मंदिर गूंज उठा।
इधर, भीड़ के चलते श्रद्धालुओं को रणतभंवर के लाडले की एक झलक पाने के लिए दो से तीन घंटे तक कतार में खड़े रह इंतजार करना पड़ा। मनौती पूर्ण होने पर कई श्रद्धालुओं ने गजानन की देहरी तक कनक दण्डवत की। जिला प्रशासन के अनुसार रविवार शाम छह बजे से लेकर सोमवार देर शाम तक करीब चार लाख श्रद्धालुओं ने गणेश के दर्शन किए। हालांकि श्रद्धालुओं की आवक रात तक जारी थी।
रातभर नहीं टूटी कतार मंदिर के सामने व्यवस्था में जुटे मेला अधिकारियों ने बताया कि शुरुआती आवक को देखते हुए इस बार मेले में भीड़ कमजोर रहने का अनुमान था, लेकिन रविवार देर शाम बाद भीड़ एकाएक बढ़ गई। आलम यह था कि लोग दुर्ग स्थित पदम तालाब तक पहुंच गए। मंदिर में त्रिनेत्र के दर्शन रातभर खुले रहे। इसके बाद भी रातभर दर्शनार्थियों की कतार नहीं टूटी।
दर्शन के बाद नहीं रुकने दिए श्रद्धालु पिछले मेलों में भीड़ दुर्ग पर ही रुक जाती थी। इससे वहां पर अधिक भीड़ हो जाती थी, लेकिन इस बार रात में दर्शन करने के बाद श्रद्धालुओं को अंधेरी गेट तक रुकने ही नहीं दिया गया, उन्हें चलते ही रहने को कह दिया गया। इससे यात्री दुर्ग परिसर में नहीं रुककर दर्शन करके गन्तव्यों की ओर चले गए। अलसुबह गणेश मार्ग में श्रद्धालुओं की ज्यादा भीड़ नहीं रही।