दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट में मनोरमा कुच्छल और एक अन्य की तरफ से याचिका लगाई गई थी। जिसमें कहा था कि 1990 में नोएडा प्राधिकरण ने उनकी भूमि अधिग्रहित की, लेकिन आज तक भी प्राधिकरण ने उचित मुआवजा नहीं दिया। हाईकोर्ट ने पीड़ितों की याचिका को स्वीकार करते हुए जमीन अधिग्रहण अधिसूचना को रद्द कर दिया था। इतना ही नहीं हाईकोर्ट ने संपत्ति पर अवैध रूप से निर्माण और संपत्ति का नेचर बदलने को लेकर नोएडा प्राधिकरण के आचरण की निंदा भी की थी।
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सांसद ने मुंह दिखाई में दिया शगुन का लिफाफा तो दुल्हन ने मांग लिया लाखों रुपये का ये गिफ्ट याचिकाकर्ताओं ने दाखिल की थी अवमानना याचिका हाईकोर्ट ने इस मामले में नोएडा प्राधिकरण को भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम के अलावा 2013 में उचित मुआवजे और पारदर्शिता के तहत तीन माह में याचिकाकर्ताओं को भुगतान करने का आदेश दिया था। इतना ही नहीं हाईकोर्ट ने विवादित भूमि के मुआवजे को दो बार बाजार मूल्य पर निर्धारित करते हुए मुआवजा देने की बात कही थी। लेकिन, प्राधिकरण के अधिकारियों आदेश का पालन नहीं किया। जिसके बाद याचिकाकर्ताओं ने अवमानना याचिका दर्ज कराई थी।
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योगीराज में कुख्यात संजीव जीवा की 4 करोड़ की संपत्ति कुर्क, कई थानों की फोर्स लगाकर की कार्रवाई हाईकोर्ट ने सीईओ के आचरण पर उठाए थे सवाल बता दें कि हाईकोर्ट की बेंच ने सीईओ रितु माहेश्वरी के आचरण पर भी सवाल उठाए थे। कोर्ट ने कहा था कि जब उन्हें सुबह 10 बजे कोर्ट के समक्ष होना चाहिए था तो सीईओ ने 10.30 बजे दिल्ली से फ्लाइट लेने का निर्णय लिया। कोर्ट उनकी सुविधा के अनुसार नहीं चलता। कोर्ट की कार्यवाही शुरू होने पर किसी का इंतजार नहीं किया जाता। सीईओ का ऐसा आचरण निंदनीय है, जो कोर्ट की अवमानना के समान है।