कोरोना महामारी का मुकाबला भी स्वदेशी टीकों के माध्यम से हम कर पाए। कोरोना वैक्सीन उत्पादन और लगाने का काम तेजी से हुआ। लंपी संक्रमण की रोकथाम के लिए टीके भी जमीनी स्तर तक तब ही पहुंच पाएंगे, जब इनका उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि प्रभावित राज्यों में लंपी संक्रमण से बचाव के प्रयास हो रहे हैं। सरकारों के साथ-साथ स्वयंसेवी संस्थाएं व स्थानीय लोग भी अपने स्तर पर बचाव उपायों में जुटे हैं। लेकिन, यह राहत अभी आधी-अधूरी ही है। इसके दो बड़े कारण हैं। पहला – राज्य सरकारें केन्द्र से चिकित्सा उपायों में मदद की उम्मीद लगाए बैठी हैं और दूसरा यह कि पशुपालकों को लंपी रोग को लेकर जागरूक करने का काम भी धीमी गति से हो रहा है। प्रधानमंत्री का यह कथन राहत देने वाला है कि केन्द्र ने राज्यों के साथ मिलकर लंपी वायरस पर काबू पाने की तैयारी शुरू कर दी है। इस बीच राज्यों से यह मांग भी उठने लगी है कि पशुओं में लंपी बीमारी को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाए। जाहिर है ऐसा हुआ तो पशुपालकों को सरकारी मदद मिलना और आसान हो सकेगा। केन्द्र व राज्य सरकारों को मानवीय दृष्टिकोण रखते हुए लंपी की चपेट में आने से मारे गए पशुओं पर उचित मुआवजे की व्यवस्था भी करनी चाहिए। इससे आर्थिक तौर पर टूट रहे पशुपालकों को संबल मिलेगा।
बड़ी जरूरत इस बात की है कि पशुओं को सैनिटाइज करने के साथ अभियान के रूप में टीकाकरण कराया जाए। लंपी संक्रमण से प्रभावित राज्यों से पशुओं के आवागमन व बिक्री पर अस्थायी रोक भी बचाव का उपाय हो सकता है। मृत पशुओं के निस्तारण की व्यवस्था भी वैज्ञानिक तरीके से की जानी चाहिए। केन्द्र की मदद समय पर मिले और राज्यों के पशुपालन विभाग भी सक्रियता से लंपी से बचाव में जुटें, तो बीमारी पर काबू पाना मुश्किल नहीं।