सरकार के ताजा प्रस्ताव पर अमल शुरू होने लगा तो अब भारतीय प्रशासनिक व पुलिस सेवाओं में नियुक्तियों के लिए
संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास करने की जरूरत नहीं होगी। सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों में तकनीकी दक्षता व विषय विशेषज्ञता रखने वाले सीधे ही इन पदों पर नियुक्त किए जा सकेंगे। सरकार की इस कवायद के पीछे क्या है मंशा? कितना उचित है यह फैसला और ऐसी नियुक्तियों में कहां तक तय हो पाएगी जवाबदेही। इसी पर आज बड़ी बहस
गवर्नेंस को प्रभावी बनाने का प्रयास है यह प्रस्ताव (गोपालकृष्ण अग्रवाल )
पहले तो यह समझना होगा कि प्रशासनिक सेवाओं मेेंं भर्ती के ये प्रस्ताव निजी क्षेत्रों के लिए ही नहीं है। दरअसल सरकार की मंशा सभी क्षेत्रों में कार्य कर रहे लोगों जिनमें सामाजिक कार्यकर्ता भी शामिल हैं, उनके अनुभवों का फायदा लेने की है। सरकार की मंशा है कि विभिन्न विभागों में उप सचिव, निदेशक और संयुक्त सचिव रैंक के पदों पर नियुक्त ऐसे लोगों की तैनाती की जाए जो अपने कार्यक्षेत्र में दक्षता रखते हों।
हाल ही आयुष मंत्रालय में सचिव के रूप में आयुर्वेद विशेषज्ञ व आयुर्वेद विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति को नियुक्ति भी इसी मंशा से दी गई है। हमें यह देखना होगा कि आज के दौर में गवर्नेंस बहुत आसान नहीं रह गई है। सरकारी नीतियों के क्रियान्वयन के लिए ऐसे लोगों की आवश्यकता होती है जो विषय की दक्षता तो रखते ही हों सम्बन्धित योजनाओं से जुड़े लोगों के बारे में भी जानकार हों। एक तरह से जनता से उनका सीधा संपर्क भी हो।
यानी प्रशासन को सिर्फ रूल ऑफ सिस्टम से ही नहीं चलाया जा सकता, इसके लिए विषय में दक्षता भी जरूरी है। यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि प्रशासनिक सेवा के पदों पर सिर्फ निजी क्षेत्र को ही लिया जाएगा। निजी क्षेत्र ही क्यों देश भर के विश्वविद्यालयों में कार्यरत शिक्षक, वैज्ञानिक, चिकित्सक आदि सब इस दायरे में आते जा रहे हैं। यह तो प्रतिभाओं को एक तरह से खुला न्यौता है कि वे सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में अपने अनुभव व विशेषज्ञता का परिचय दें। रहा सवाल जवाबदेही का! गैर सरकारी क्षेत्र से सलाहकारों की सेवाएं पहले से ही ली जाती रहती है।
मोटे तौर पर यह देखने में आ रहा था कि ऐसे सलाहकार सिर्फ सरकार को सलाह देने तक ही सीमित रहते थे। इसके बाद उनकी कोई जवाबदेही नहीं होती थी। अब इस तरह के लोगों को यदि सीधे ही जोड़ा जाएगा तो निश्चित रूप से उनकी जवाबदेही भी तय होगी ही। इसमें किसी को चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।
नियुक्तियों का ऐसा प्रस्ताव गवर्नेंस को प्रभावी बनाने के प्रयास मात्र हैं इन्हें किसी और नजरिए से देखना उचित नहीं है। किसी एक विशेष सेवा से चयनित होकर आए व्यक्तियों का ही एकाधिकार रहे वह वक्त अब नहीं है। इसीलिए सरकार ने आईएएस और आईपीएस जैसे सीनियर अधिकारियों से लेकर जिम्मेदार पदों पर आसीन अपने कार्मिकों के कामकाज की समीक्षा करनी भी शुरू की है। मेरा मानना है कि जब स्वास्थ्य, निर्माण, शिक्षा, कृषि, उद्योग व समाज कल्याण कार्यक्रमों से जुड़े महकमों में विशेषज्ञता लिए लोगों को जोड़ा जाएगा तो कामकाज में और गति आएगी। यह भी जरूरी है कि मौजूदा सिस्टम में जहां प्रशिक्षण की जरूरत हो वह भी दी जाए ताकि कामकाज सुगमता से हो।
जवाबदेही कैसे तय होंगी ऐसी नियुक्तियों में? (डॉ. सुधीर वर्मा )
निजी क्षेत्र के अफसरों को सीधे तौर पर आईएएस या आईपीएस बनाने का केन्द्र सरकार का प्रस्ताव अधिक व्यावहारिक प्रतीत नहीं होता। यूं तो कहा यह जा रहा है कि ऐसे लोगों का उनकी योग्यता व अनुभव के हिसाब से चयन किया जाएगा। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या निजी क्षेत्र से आने वाले इन लोगों की कोई जवाबदेही तय की जा सकेगी?
वैसे सरकार के बड़े उपक्रमों में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी नियुक्त किए जाते रहे हैं। ठीक इसी तरह विभिन्न गैर सरकारी संगठनों में भी आईएएस अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति होती रहती है। ये नियुक्तियां भी उनकी योग्यता व अनुभव के आधार पर होती है। बड़ी समस्या ऐसे प्रयासों से जो आने वाली है वह आईएएस कॉडर के डिस्टर्ब होने की है। कॉडर में कहां और कितने प्रमोशन कब-कब होंगे यह भी अनिश्चितता भरा हो जाएगा।
यह बात सही है कि प्रशासनिक सेवाओं में प्रबंधकीय दक्षता वाले अधिकारियों का महत्व होता है। ऐसी दक्षता वाले अफसरों की आईएएस कॉडर में कमी नहीं है। तकनीकी दक्षता के नाम पर प्राइवेट सेक्टर से प्रशासनिक सेवाओं के अफसरों के रूप में एंट्री दिलाने के प्रयास देखने में तो अच्छे लगते हैं। लेकिन समय-समय पर प्रशासनिक पदों पर तकनीकी क्षमता वाले लोगों को तैनात करने के पूर्व के प्रयास भी प्रभावी रहे हों, ऐसा कम ही नजर आया है।
निजी क्षेत्र से आए लोगों को यदि सरकारी कामकाज से जोड़ा भी जाता है तो उसकी विस्तृत रूपरेखा बनाने की जरूरत है। कुछ क्षेत्र ऐसे हो सकते हैं जहां ऐसे लोगों की उपयोगिता हो सकती है। लेकिन सिर्फ कुछ समय के लिए आने वाले ऐसे लोगों की जवाबदेही कैसे तय हो पाएगी यह भी देखना होगा। सरकार के अहम फैसले लेने की जिम्मेदारी उन्हीं की होनी चाहिए जो विभिन्न दायित्वों का निर्वहन करते हुए शीर्ष पदों पर पहुंचते हैं।
हमें यह देखना होगा कि भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के माध्यम से चयनित युवा प्रशिक्षण काल से लेकर अपने पूरे कार्यकाल में अलग-अलग कार्यक्षेत्रों में पदस्थापित होता है। इस दौरान लोगों से संवाद करते हुए वे अपने काम को संपादित करते हैं। एक तरह से परिपक्वता लिए हुए वे शीर्ष पदों पर पहुंचते हैं। जो लोग यह तर्क देते हैं कि निजी क्षेत्र के दक्ष लोगों के माध्यम से विकास योजनाओं का क्रियान्वयन ठीक से हो पाएगा उनका आकलन ठीक नहीं।
हमारे यहां सिंचाई, जलदाय व सार्वजनिक निर्माण विभाग जैसे महकमों में वरिष्ठ इंजीनियर अपने काम में दक्षता लिए हुए रहते हैं। तो फिर क्यों तकनीकी दक्षता के नाम पर बाहर से नियुक्तियां की चर्चा हो रही है? प्रशासनिक सेवाओं में आने वाले नए लोगों की दक्षता पर भी संदेह नहीं किया जा सकता। जरूरत इन्हें समुचित नेतृत्व देने की है।