क्लाइंट के प्रति एक वकील के कर्तव्य के रूप में अधिवक्ता ब्रीफ स्वीकार करने के लिए बाध्य होगा। मुवक्किल की पैरवी करने के लिए सहमत होने के बाद बिना युक्तियुक्त कारण के पीछे नहीं हटना चाहिए। क्लाइंट के हितों के प्रति सजगता और जागरूकता हो। मुकदमेबाजी के लिए ना उकसाए। वकील को अपने मुवक्किल या उसके अधिकृत एजेंट के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के निर्देश पर कार्य नहीं करना चाहिए। मामलों की सफलता के आधार पर शुल्क नहीं लेना चाहिए। कार्रवाई योग्य दावे में ब्याज, शेयर आदि प्राप्त नहीं करना चाहिए। एक अधिवक्ता को अपने मुवक्किल के विश्वास का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए या उसका लाभ नहीं उठाना चाहिए। फीस का हिसाब पारदर्शी होना चाहिए और फीस की रसीद देनी चाहिए।
एक बार अपने क्लाइंट के लिए पैरवी करने के पश्चात प्रतिवादी के लिए उपस्थित नहीं हुआ जा सकता। प्रतिवादी के साथ सीधे बातचीत नहीं करनी चाहिए। इसी तरह कुछ अन्य व्यावसाइक बाध्यताएं भी हैं। मसलन स्वयं का विज्ञापन न करे या केस पाने के लिए याचना न करे, निर्धारित नियमों के तहत ही निश्चित आकार का साइन-बोर्ड और नेम-प्लेट का उपयोग करे। जिस केस में पहले से कोई साथी अधिवक्ता है और क्लाइंट उसे बदलना चाहता हो तो साथी अधिवक्ता की सहमति आवश्यक है। सहमति देना साथी अधिवक्ता का नैतिक दायित्व है।