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द वाशिंगटन पोस्ट से… अफगान घटनाक्रम बाइडन के लिए सब कुछ खत्म होना नहीं

Afghanistan Crisis : अफगानिस्तान के हालात बाइडन (joe biden) के राष्ट्रपति काल को परिभाषित करने वाले नहीं हैं और न ही अगले चुनाव को।

Sep 01, 2021 / 11:21 am

Patrika Desk

joe biden

मैट बाइ

(लेखक स्तम्भकार, न्यूयॉर्क टाइम्स व याहू न्यूज से संबद्ध रहे हैं)

Afghanistan Crisis : अफगाानिस्तान से जल्दबाजी में अमरीकी सैनिकों (american soldiers) की वापसी मानव त्रासदी है जो अपवाद स्वरूप लिए गए कमजोर निर्णयों और ऐतिहासिक वास्तविकताओं के बीच टकराव को दर्शाती है। लेकिन क्या इससे राष्ट्रपति जो बाइडन का पूरा एजेंडा ही पटरी से उतर जाएगा? शायद नहीं। टीवी चैनलों पर वामपंथी और डेमोक्रेट्स के भविष्य वक्ताओं को शांत रहने की जरूरत है क्योंकि इतिहास और सामान्य बोध यही कहता है कि अफगानिस्तान के हालात बाइडन के राष्ट्रपति काल को परिभाषित करने वाले नहीं हैं और न ही अगले चुनाव को। डेमोक्रेटिक वाशिंगटन में सामान्य धारणा है कि बाइडन को सक्षम व गंभीर माना जा रहा था जब तक कि अफगान वापसी की विफलता, 13 सैन्यकर्मियों की मौत और आने वाले दिनों में और हिंसा की आशंका सामने नहीं आई थी। यह सब तब जबकि कुछ राज्यों में कोविड-19 के मामले फिर से सामने आ रहे हैं।

बाइडन की रेटिंग में गिरावट आने से डेमोक्रेट सदस्यों को आशंका है कि अगले साल के मध्यावधि चुनाव में उन्हें नुकसान होगा। कुछ तो इस बात की मांग भी करने लगे हैं कि बाइडन को केबिनेट के वरिष्ठ सदस्यों को हटाना शुरू कर देना चाहिए। इतिहास पर नजर डालें तो पाएंगे हर राष्ट्रपति को अपने कार्यकाल की शुरुआत में कुछ अप्रत्याशित संकटों का सामना करना पड़ता है, खास तौर पर विदेश संबंधी मामलों में। कई बार पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों की नीति पर चलना समस्या का कारण बन जाता है।

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जॉन एफ. कैनेडी को बे ऑफ पिग्स में विफलता के कारण, तो रोनाल्ड रीगन को 1983 में बेरूत में 200 नौसैनिक मारे जाने के चलते शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी। रीगन ने इसकी जिम्मेदारी भी ली थी। बिल क्लिंटन के राष्ट्रपति काल में सोमालिया में 18 सैनिक मारे गए थे, जो पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज एच.डब्ल्यू. बुश के कार्यकाल के अंतिम दिनों में वहां भेजे गए थे। इनमें से कोई भी घटनाक्रम राष्ट्रपति काल को परिभाषित करते हुए नहीं देखा जाता। विदेश नीति की बात करें तो जहां कैनेडी को क्यूबा मिसाइल संकट के लिए याद किया जाता है और रीगन को शीत युद्ध समाप्त करने के लिए, वहीं क्लिंटन को कोसोवो पर हमला करने के लिए।

कुल मिलाकर डेमोक्रेट्स को यह मान लेना चाहिए कि मध्यावधि चुनाव तो वे पहले ही हार रहे थे। मैं गलत भी हो सकता हूं – संभव है जो होता आया है, इस बार न होता। लेकिन तथ्य यही है कि मध्यावधि चुनाव में राष्ट्रपति की पार्टी को कभी वोट नहीं मिलते। इसलिए अफगानिस्तान घटनाक्रम होता या न होता, अगले साल के मध्यावधि चुनाव में डेमोक्रेट्स का नुकसान उठाना तय था। मध्यावधि चुनाव विदेश नीति से प्रभावित नहीं होते। एक साल बाद मतदाताओं का ध्यान क्या अर्थव्यवस्था, महामारी या फिर सरकार के खर्च पर होगा। इसकी प्रबल संभावना है। पर बीस साल चले अफगानिस्तान युद्ध के अंत – वापसी, जिसे ज्यादातर लोगों का समर्थन हासिल था – को लेकर सवाल उठेंगे, इसकी संभावना कम है।

अमरीकियों ने बाइडन को सर्वाधिक मतों और 2008 के बाद सर्वाधिक मार्जिन से इसलिए नहीं जिताया कि लोगों ने सोचा वह कोई गलती नहीं करेंगे और विदेशी धरती पर जारी युद्धों को समाप्त करने की अपने पूर्ववर्ती की नीति को आगे बढ़ाएंगे, बल्कि उन्होंने बाइडन को इसलिए चुना क्योंकि उन्होंने विश्वसनीय और जवाबदेह नेतृत्व की वापसी का वादा किया था। संभव है कि बाइडन मौजूदा संकट में भी मतदाताओं को तसल्ली दे पाएंगे कि मतदाताओं का पहला चहेता विकल्प वह ही हो सकते हैं। कम से कम उन्होंने लंबे समय तक खींचे गए उस युद्ध के दरवाजे तो बंद किए, जिस पर से काफी पहले ज्यादातर अमरीकियों का भरोसा उठ गया था।
(द वाशिंगटन पोस्ट से विशेष अनुबंध के तहत)

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